Menu

Citizens for Justice and Peace

यूपी-उत्तराखंड में वनाधिकार आंदोलन का चेहरा बने नूरजहां-मुस्तफा मामला राजाजी राष्ट्रीय पार्क का है

12, Aug 2020 | Navnish Kumar

‘डर के आगे जीत हैं’। यह फकत कोई जुमला नहीं, हकीकत हैं जिसे एक बार फिर सच कर दिखाया हैं राजाजी पार्क में डेरे में रह रहे एक वन गुर्जर परिवार ने। अपने संघर्ष के बल पर यह परिवार अरसे से यहां रह रहा हैं लेकिन 16-17 जून को जो हुआ, उसने नूरजहां व मुस्तफा (बाप-बेटी) को उप्र व उत्तराखंड में वनाधिकार आंदोलन का नया चेहरा बना दिया हैं। वनाश्रित समुदायों खासकर वन गुर्जरों के बीच यह बाप-बेटी, न सिर्फ एक नायक के तौर पर उभरें हैं बल्कि इनके धारा के विरुद्ध संघर्ष ने अंदर ही अंदर पूरे वनाश्रित समुदाय में हक, उम्मीद और एकजुटता की नई लौ भी जला दी हैं।

मामला राजाजी राष्ट्रीय पार्क का है। देहरादून के निकट आशारोड़ी बीट में वन गुर्जर मुस्तफा चोपड़ा व उनकी बेटी नूरजहां का परिवार डेरा बनाकर रहते हैं। यह अरसे से यहां सड़क किनारे डेरे में रहते आ रहे हैं। लेकिन वनाधिकार कानून आने के बाद हक के लिए आवाज उठाना उन्हें भारी पड़ गया। दरअसल, वनों पर एकाधिकार की अपनी सामंती सोच के चलते विभाग, पार्क क्षेत्र से वन गुर्जरों को हटाना चाहता हैं। इसी को लेकर विभागीय उत्पीड़न के चरम पर होने से एक-एक कर ज्यादातर वन गुर्जर परिवार, पार्क छोड़कर चले गए हैं। मुस्तफा नहीं गए और उल्टे वनाधिकार कानून के तहत वन भूमि पर मालिकाना हक की मांग की। इस पर विभाग का उत्पीड़न बढ़ना ही था। बढ़ा।  जबरन बेदखली की कोशिश हुई तो मुस्तफा ने हाइकोर्ट की शरण ली। नतीजा कुछ दिन शांति और फिर उत्पीड़न और संघर्ष का दौर शुरू हो गया। कई बार डेरे आदि को नुकसान पहुंचाया गया, दूध बहा दिया गया लेकिन अकेले होने के बावजूद मुस्तफा ने हार नहीं मानी।
CJP उन लाखों आदिवासियों के संघर्ष के साथ है, जिनके जीवन व आजीविका पर सुप्रीम कोर्ट के निंदनीय आदेश से खतरा मंडरा रहा है। हम सोनभद्र के आदिवासियों के वनाधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहे हैं। हमारे इस प्रयास और FRA को गहराई से समझने व आदिवासियों के संघर्ष में उनका साथ देने के लिए यहाँ दान करें.
इस बीच जैसे ही कोरोना आया तो महकमे को मानो मुहमांगी मुराद मिल गई हो। विभाग ने आपदा में अवसर तलाशते हुए, अबकी बार पूरी ताकत से 30-40 की संख्या में मुस्तफा की बेटी नूरजहां के डेरे पर हमला बोला। 16 जून के इस हमले में डेरा तोड़ दिया। नूरजहां को बाल पकड़कर घसीटा। मारा-पीटा। थाने व जेल भेजा। मुस्तफा को भी जेल भेज दिया लेकिन इस पर भी मुस्तफा नहीं झुके तो उसके दो नाबालिग बच्चों को भी जेल में डाल दिया। इतने पर भी मुस्तफा नहीं डरे तो बैकफुट पर आने की बारी, वन विभाग की थी। कोरोना काल में वनाधिकार कानून का साथ मिला। नूरजहां व मुस्तफा न सिर्फ छूट गए बल्कि कोर्ट ने वनाधिकार कानून के आईने में कमेटी बनाते हुए जांच के आदेश दिए। हालांकि दोनों नाबालिग बच्चे अभी भी जेल में हैं लेकिन बाप-बेटी के हार न मानने वाले संघर्ष (जीत) ने उप्र व उत्तराखंड के वन गुर्जरों में नई चेतना और उत्साह जगाने का काम किया हैं और समुदाय में  आंदोलन का नया चेहरा बनकर उभरें हैं।
वन पंचायत संघर्ष मोर्चा के तरुण जोशी कहते हैं कि उत्तराखंड व उप्र के वनों में विभाग का कॉकस बना हुआ हैं। लेकिन नूरजहां व मुस्तफा ने जिस तरह बिना डरे व झुके लगातार संघर्ष किया हैं, उससे विभाग बैकफुट पर आने को मजबूर हुआ है। वरना तो महकमे ने कोरोना में भी इन्हें तोड़ने की पूरी कोशिश की। तब्लीगी जमात तक की अफवाहों को हवा देने का काम किया गया। लेकिन डर के आगे जीत हैं, की कहावत के चलते आज पूरा वन गुर्जर समुदाय इनके संघर्ष को सलाम कर रहा हैं। वन गुर्जर युवा संगठन के मीर हमजा भी मानते हैं कि नूरजहां व मुस्तफा के संघर्ष से पूरे समुदाय में अंदर ही अंदर हक, एकजुटता और आंदोलन का बीज रोपित व पल्लवित हुआ है जो आने वाले समय मे वनाधिकार की जंग में निर्णायक भूमिका अदा करेगा।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव अशोक चौधरी कहते हैं कि नूरजहां व मुस्तफा ने देश व दुनिया को एक बार फिर बता दिया है कि जो लड़ते हैं, वहीं जीतते हैं और दुनिया उन्हीं को सलाम करतीं हैं। हालांकि नाबालिग बच्चों को जेल भेजे जाने पर चिंता जताते हुए, अशोक चौधरी इसे उत्पीड़न की इंतहा और कोरोना काल में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन करार देते हैं।

और पढ़िए –

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Go to Top