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चाय वाले की माँ असम में 'विदेशी' घोषित एक बंगाली हिन्दू अचानक डिटेनशन कैंप में मृत पाया गया

23, Aug 2018 | डेबरा ग्रे

आज देश भर के अखबार अक्सर एक चाय वाले के बारे में खबरें छापते हैं. कभी कभी उसी चाय वाले की वृद्ध माँ की भी तसवीरें छपतीं हैं. असम प्रदेश अपने चाय के बागानों के लिए विश्वप्रसिद्ध है. आज चलिए आपका परिचय करवाते हैं असम के एक चाय वाले की माँ से… एक ऐसी माँ जिसके सवालों का जवाब शायद देश के सबसे प्रसिद्ध चाय वाले के पास भी ना हो.

 

असम के गोआलपाड़ा ज़िले में मुख्य रास्ते तो पक्के और मज़बूत हैं, पर शुभ्रोतो दे के घर जाने के लिये आपको एक कच्चा रास्ता लेना पड़ेगा. जब हम वहां जून के महीने में पहुंचे थे तो बारिश का मौसम था और जगह जगह कीचड़ भर गया था. घर के बाहर बांस की लकड़ियों से एक सफ़ेद कनात बंधी हुई थी. ये किसी शादी का शामियाना नहीं था… दरअसल ठीक एक दिन पहले शुभ्रोतो के परिवार जनों ने उसकी तेरहवी मनाई थी. ३९ वर्षीया शोभ्रोतो दे को हाल ही में एक फोरेनेर्स ट्राइब्यूनल ने ‘विदेशी’ घोषित किया था जिसके बाद उन्हें गोआलपाड़ा के बंदी गृह में स्थित एक डिटेनशन कैंप में डाल दिया गया. इसी डिटेनशन कैंप में २६ मई को शुभ्रोतो मृत पाए गए थे.

डी वोटर और संदिग्ध विदेशियों को पहले फोरेनेर्स ट्राइब्यूनल में अपने भारतीय होने का सबूत देना होता है. इसके बाद ही उनका नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में अंकित हो सकता है. शुभ्रोतो पर संदिग्ध बंगलादेशी होने के इलज़ाम के कारण कार्यवाही की गयी. लोग अक्सर समझते हैं कि ऐसे इलज़ाम असम में केवल मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर लगाए जाते हैं. लेकिन कई बंगाली हिन्दू भी ऐसे इल्ज़ामों से ग्रस्त हैं.

असम में ४०,०७,७०७ लोगों का नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के अंतिम ड्राफ्ट में नहीं अंकित हुआ है. इससे पहले की यह मानवीय संकट और भी तीव्र और दर्दनाक हो जाए, हम अपनी एक १५ लोगों की टीम भेज रहे हैं जो की क्लेम्स एंड ऑब्जेक्शन प्रक्रिया के अंतर्गत इन लोगों को अपना नाम दर्ज करवाने का एक आखरी मौका दे सके. वकीलों का, दस्तावेजों का, आना जाने का, रहने का खर्चा काफ़ी है. लेकिन आपके योगदान से हम लाखों लोगों को मुफ्त कानूनी सेवा प्रदान कर सकेंगे. कृपया यहाँ डोनेट करके अपना योगदान दें.
शुभ्रोतो दे

जब हम उनकी माँ से बातचीत करने पहुंचे तो उन्होंने पहले चाय-बिस्कुट और पूजा का प्रसाद परोसा. एक अजीब से सन्नाटे ने जैसे पूरे घर को घेर लिया था… केवल एक माँ की आँखों का खालीपन ही उस सन्नाटे से ज़्यादा दर्दनाक था. “सीधा सादा था मेरा बेटा. आज कल के लड़कों जैसा बिलकुल नहीं था. किसी से कोई बैर नहीं था. उसने तो कभी किसी से ऊँची आवाज़ में बात तक नहीं की. हमारे पूरे परिवार का वही ख्याल रखता था,” कहती हैं ओनिमा दे अपने बेटे को याद करते हुए.

शुभ्रोतो दे की माँ ओनिमा

“यहाँ से कुछ ही दूर हमारी एक चाय की दूकान है. मेरे बेटे को दूकान से ही उठा कर ले गए थे. मैं घर से पुलिस थाने भागी अपने बेटे को छुडवाने के लिए पर पता चला उसे रिहा नहीं किया जा सकता,” ओनिमा बताती हैं. “उस के बाद मैं हर हफ्ते डिटेनशन कैंप में अपने बेटे से मिलने जाती थी. उस से जेल का खाना नहीं खाया जाता था. पर मैं जो घर से पका कर ले जाती थी वों खाना वहां उसे देने नहीं दिया गया. तो मैं उसे कुछ फल, चीड़ा-मुड़ी दे दिया करती थी,” कहतीं हैं ओनिमा. जब हमने पूछा की ओनिमा के हाथ का बना कौन सा खाना शुभ्रोतो को सबसे ज्यादा पसंद था, तो ओनिमा से रहा ना गया… उनकी आँखें नम हो गयीं और गला भर आया… कुछ देर बाद उन्होंने अपने आप को फिर काबू में किया और आगे बताया, “अन्दर क्या हो रहा था वो हमें कभी बता नहीं पाया. जब भी हम उस से मिलते गार्ड पीछे घूमता रहता था. पर देख कर कभी नहीं लगा की उसकी तबियत ख़राब है.”

ओनिमा आखरी बार शुभ्रोतो से २१ मई को मिलीं. उन्होंने उसे कुछ केले खरीद कर दिए और ३५० रूपये भी दिए. अपने बेटे को आश्वासन दिया की उसके बेल की दरख्वास्त अब हाई कोर्ट में होगी और वों उसे ज़रूर बाहर निकालेंगी. शुभ्रोतो को इस बात पर जाने क्यों हंसी आ गयी और अपने बेटे को हँसता छोड़ ओनिमा घर वापस आ गई. २६ मई को सुबह १० बजे उन्हें खबर मिली की शुभ्रोतो चल बसे. पोस्ट मॉर्टम  रिपोर्ट के अनुसार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, पर इस बात पर परिवार जनों को संदेह है.

“अगर वो बीमार होता तो उसके कुछ तो लक्षण दिखाई देते. वहां जेल में डॉक्टर भी हैं. फिर मेरे बेटे के साथ अचानक ऐसा कैसे हो गया,” पूछतीं हैं ओनिमा. वो तो यह भी नहीं समझ पायीं हैं की उनके बेटे को किस बिनाह पर बंगलादेशी कहा गया. ओनिमा पूछतीं हैं, “मेरा जन्म यहाँ हुआ है. मेरा पूरा परिवार यहाँ से है. मेरे पति का कुनबा भी हमेशा से यही बसा हुआ है. तो मेरा बेटा बंगलादेशी कैसे हो गया?” ओनिमा बतातीं हैं की उनके बेटों का जन्म प्रमाण पत्र तो नहीं है मगर उनके टीकाकरण के सब कागज़, स्कूल के दाखिले के कागज़ तथा वोटर लिस्ट में नाम हैं. “लेकिन वोटर लिस्ट में उसका नाम गलती से सुबोध लिखा गया है. ये तो सरकारी अफसरों की गलती है, हमारी नहीं. तो इसकी सज़ा मेरे बेटे को क्यों मिली?” इस माँ के सवालों का जवाब कौन देगा?

शुभ्रोतो के परिवार में उनकी वृद्ध माँ के अलावा उनकी पत्नी, दो बेटे और दो भाई भी हैं. एक भाई की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. साफ़ ज़ाहिर है की आज भी पूरा परिवार शुभ्रोतो की मौत के सदमे मैं हैं. उनकी पत्नी तो अब भी कुछ बोल ही नहीं पा रही थीं.

शुभ्रोतो दे की पत्नी और बेटा

 

जब हम शुब्रोतो की चाय की दूकान पर पहुंचे तो वहां ठीक दे परिवार के घर के चिराग की तरह ही चूल्हा भी बुझा हुआ पाया. खाली पतीले के नीचे ठंडी राख़ थी.

शुभ्रोतो दे की चाय की दूकान

 

परिवार के अलग अलग लोग शुभ्रोतो की मौत से अपने अपने तरीके से जूंझ रहे हैं… कोई उदास है, कोई खामोश, तो कोई नाराज़. शुभ्रोतो का भाई अब भी गुस्से से तमतमाया हुआ है, “मेरे भाई को चोर, डकैतों और हत्यारों के बीच रखा था? क्यों? डी वोटर और फ़ोरेनर को तो ऐसे लोगों के साथ नहीं रखना चाहिए!”

दीवार पर लगी हनुमान जी की तस्वीर

 

हरी दीवार पर लगी हनुमान जी की तस्वीर पर हमारी नज़र जाती है. सच क्या है, आगे क्या होगा, शायद केवल संकट मोचन को ही ज्ञात है…

 

 

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