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किस्मतिया और सुखदेव हुए रिहा, लेकिन यूपी पुलिस का ग्रामीणों पर अत्याचार अब भी जारी घर के बाहर पुलिस धमकी भरे नोटिस चिपका रही है

16, Oct 2018 | सुष्मिता

उत्तर प्रदेश पुलिस सोनभद्र क्षेत्र के आदिवासियों को अब भी लगातार परेशान कर रही है. किस्मतिया और सुखदेव गोंड को तीन महीनों के कारावास से रिहाई मिलने के बाद अब  पुलिस ने लिलासी के एक अन्य ग्रामीण नंदू गोंड को परेशान करना शुरू कर दिया है.

CJP ने पाया कि पुलिस ने उसके घर के बाहर एक नोटिस चिपकाया है जिसमें लिखा है कि, “बेल करवा लो नहीं तो कुर्की कर देंगे!”

वे आदिवासी मानव अधिकार कार्यकर्ता जो अपने जंगलों की हिफाज़त के लिए लड़ते हैं जिनपर उनका ही अधिकार है, उन्हें झूठे मामलों में फंसाया जा रहा है, केवल इसलिए कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. सीजेपी ऐसे लोगों की हिफाज़त के लिए काम कर रहा है. हम वन अधिकारों के संघर्ष में उनके साथ खड़े हैं.  हमारे अभियान का समर्थन करने के लिए, कृपया यहां दिल खोल कर दान करें.

लिलासी के ग्रामीणों का मानना है कि किस्मतिया और सुखदेव की ज़मानत अदालत द्वारा मंज़ूर कर लिए जाने के कारण और सोनभद्र के वन अधिकार आन्दोलन की प्रखर नेता सुकालो की रिहाई प्रक्रिया तेज़ होती देख यहां की पुलिस बौखलाई हुई है, इसलिए वो अब फिर से अनर्गल तरीके से लोगों को परेशान कर शक्ति प्रदर्शन करना चाहती है ताकि लोगों में पुलिस का खौफ़ पैदा हो.

इन गांव वालों को एक बार फिर से हमारे समर्थन और हमारी सहायता की ज़रुरत है.

किस्मतिया और सुखदेव की रिहाई

आदिवासी मानवाधिकार रक्षकों सुकालो और किस्मतिया गोंड के लिए चलाए गए रिहाई अभियान  में सीजेपी और ऑल इंडिया यूनियन ऑफ फ़ॉरेस्ट वर्किंग पीपल (AIUFWP) को महत्वपूर्ण सफलता हासिल हुई है. सुकालो, सुखदेव और किस्मतिया गोंड को अवैध रूप से कई महीनों तक बंदी बना कर रखे जाने के बाद अब उन्हें ज़मानत मिल गयी है. सुखदेव और किस्मतिया को रिहा कर दिया गया है. अब जब हम AIUFWP की कोषाध्यक्ष सुकालो गोंड की रिहाई का इंतजार कर रहे हैं तब इस तरह के उत्पीड़न की ख़बरें लगातार सामने आ रही हैं.

ये सफलता CJP द्वारा दायर हबियास कॉर्पस पेटिशन (बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका) के चलते AIUFWP की कोषाध्यक्ष सुकालो और वन अधिकार समिति (FRC) की सचिव किस्मतिया गोंड को बीते 7 सितम्बर को कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के बाद हासिल हुई है. इसके बाद ही अदालत ने दोनों महिलाओं को न्यायिक सहायता प्राप्त करने की सुविधा दी थी.

अदालत ने प्रासंगिक पूछताछ करते हुए पुलिस द्वारा प्रस्तुत हलफ़नामे में अदालत को गुमराह करने की कोशिश किए जाने के कारण स्थानीय पुलिस को फटकार भी लगाई थी. इस मामले में सम्बंधित अधिकारियों को इसके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने का मौखिक आदेश देते हुए न्यायधीशों ने कहा था कि “यदि आप अदालत के समक्ष प्रस्तुत शपथपत्र जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेज़ में गड़बड़ी कर अदालत को गुमराह करने जैसा गंभीर दुस्साहस कर रहे हैं तो हम उस भयानक दहशत की कल्पना मात्र कर सकते है जो आप स्थानीय स्तर पर फैलाते होंगे”.

आदिवासी नेताओं को जून में संदिग्ध तरीके से गिरफ़्तार किया गया

सुकालो गोंड, सुखदेव गोंड, किस्मतिया गोंड व दो अन्य लोगों को शुक्रवार 8 जून को गिरफ़्तार किया गया था. सोनभद्र (यूपी) पुलिस ने उन्हें चोपण रेलवे स्टेशन से बड़े ही गुप्त और संदिग्ध तरीके से तब उठाया जब वे यूपी के वनमंत्री दारा सिंह चौहान और वन सचिव के साथ मीटिंग कर के लखनऊ से लौट रहे थे. दरअसल, बैठक में चौहान ने लिलासी के ग्रामीणों पर पिछले हमलों की जांच करने का वादा किया था, जिन्हें कथित रूप से वन विभाग के साथ मिलकर आयोजित किया गया था. एफआईआर में महिलाओं के नामों का भी उल्लेख नहीं किया गया था.

सुकालो और किस्मतिया के लिए लगभग तीन महीने का ये समय कठिन परीक्षा वाला रहा. सीजेपी और AIUFWP को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष हबियास कॉर्पस याचिका दायर करने के लिए मजबूर होना पड़ा. सीजेपी और AIUFWP के अभियान के बाद कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों ने भी इन दोनों महिलाओं की रिहाई के लिए सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर अपना समर्थन दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने 28 अगस्त को ट्वीट किया कि वे महिलाओं के बारे में चिंतित हैं और स्थानीय कांग्रेस नेताओं से इस मामले को संज्ञान में लेने की अपील की. इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोनभद्र पुलिस के एसपी को निर्देशित किया कि 7 सितंबर को अदालत में इन दोनों महिलाओं को पेश किया जाए. हाल ही में यूपी के विधायक संजय गर्ग ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और उन्हें पत्र के ज़रिए सोनभद्र के ग्रामीणों पर लगातार हो रही पुलिसिया हिंसक कार्रवाई से अवगत करया. उन्होंने AIUFWP के कार्यों को ग़लत तरीके से प्रचारित किए जाने के मुद्दे पर भी प्रकाश डाला.

हालांकि इन ग्रामीणों की सुरक्षा के लिए की जाने वाली कार्यवाहियां अब भी बेहद सुस्त हैं. सच्चाई तो ये है कि ग्रामीणों को अब भी डराया धमकाया जा रहा है. पुलिस का हाज़मा बिगड़ गया है, वो इस बात को पचा ही नहीं पा रही है कि जिन ग्रामीणों को वो अब तक निरंकुश हो कर प्रताड़ित कर रही थी, समाज के लोगों की साझी मदद से अब उनके मामले उच्च न्यायलय तक पहुच रहे हैं और सकारात्मक नतीजे भी पा रहे हैं. पुलिस की इस ज़्यादती को रोकने के लिए, और पुलिस की ज़िम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए अब हमें अपनी आवाज़ और भी अधिक मज़बूती से उठाने की ज़रुरत है.

अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव

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