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एक बार फिर इन्साफ के दरवाज़े पर दस्तक! तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद जी की अग्रिम ज़मानत आवेदन (ABA) पर सुनवाई

25, Jun 2018 | CJP Team

एक बार फिर, हाशिये पर जी रहे दबे-कुचले लोगों के मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली हमारी सचिव तीस्ता सेतलवाड़, अपने सहकर्मी और पति जावेद आनंद के साथ अपनी अग्रिम ज़मानत आवेदन की सुनवाई के लिए गुजरात उच्च न्यायलय में दृढ़तापूर्वक खड़ी हैं. केंद्र सरकार और गुजरात सरकार की अनेक रणनीतियों के बावजूद, सेतलवाड़ और आनंद अपने केस बड़ी शान्तिपूर्वकता से लड़ रहे हैं, तथा सभी कानूनी प्रक्रियाओं और जांच पड़ताल में अपना पूर्ण सहयोग देते आये हैं. अब तक जो भी इस केस से सम्बंधित हुआ है उसका संक्षिप्त विवरण यहां दिया गया है.

 

गुजरात उच्च न्यायलय 2018 में सेतलवाड़ के खिलाफ झूठे आरोपों से संबंधित मामले की सुनवाई 12 और 13 जून को करने वाली थी (जो अब 26 जून तक स्थगित कर दी गई), जिसमें उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने सर्व शिक्षा अभियान के तहत अपने शिक्षा एनजीओ KHOJ के लिए धन प्राप्त करने के लिए धोखाधड़ी का इस्तेमाल किया और फिर उस धन राशि का दुरुपयोग किया. 12 जून, 2018 को सुनवाई के बाद उनके वकील मिहिर ठाकुर ने गुजरात उच्च न्यायलय को सेतलवाड़ के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को झूठ बताकर क्षेत्राधिकार के मुद्दे पर सवाल उठाया और कहा कि यह मामला मानव संसाधन और विकास (HRD) मंत्रालय के सर्व शिक्षा अभियान के तहत शिक्षा के उद्देश्य से महाराष्ट्र में उपयोग किया जाने वाला धन है इसलिए गुजरात में इसकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाने चाहिए.

सभी आरोपों का उत्तर विस्तार से तथ्यों के साथ आम किये जाने के बावजूद. सीजेपी और सबरंग इस तथ्य से चिंतित हैं कि एक एजेंडे के तहत, मानवाधिकार रक्षकों और उनके संगठनों को भंग करने के लिए इस प्रतिशोधी शासन में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के महत्वपूर्ण वर्ग चुनिंदा रूप से मामले की एकतरफ़ा रिपोर्ट करते हैं, वो भी बड़े बोल्ड हेडलाइंस में.

एक प्रतिशोधी राज्य और प्रशासन हमें चुप करने का निरंतर प्रयास कर रहा है. हम आपसे हमें समर्थन देने के लिए अपील करते हैं. आपकी मदद से हम न्यायालयों और उनके बाहर भी हमारा संघर्ष जारी रख सकते हैं. आपके सहयोग से हम नरोडा पाटिया के फैसले, जिसके अंतर्गत कुछ दिग्गज हस्तियों को चश्मदीद गवाहों के बयानों के बावजूद निर्दोष करार दया गया था, उसके खिलाफ़ अपील करेंगे. हम ज़ाकिया जाफरी केस को आगे बढ़ाएंगे. हम भूमि अधिकार की मांग कर रहे आदिवासियों और वनवासियों पर लगे झूठे मामलों के खिलाफ अदालतों में अपनी जंग जारी रखेंगे! हम सीजेपी को असम में मानवीय संकट के विरुद्ध अभियान और कानूनी रणनीति बनाने में मदद करने में आपकी सहायता चाहते हैं.

गुजरात उच्च न्यायलय में दर्ज की गई ABA याचिका (प्रकीर्ण आपराधिक आवेदन) को यहाँ पढ़ा जा सकता है:

 

जावेद आनंद द्वारा गुजरात उच्च न्यायलय में दायर हलफनामा भी यहाँ पढ़ा जा सकता है:

 

हमारा मामले का विवरण देने वाला आधिकारिक बयान यहां पढ़ा जा सकता है:

सबसे बेतुकी बात यह है कि किस प्रकार गुजरात पुलिस इस अग्रिम ज़मानत याचिका का विरोध कर रही है, यह कहकर कि सेतलवाड़ साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर सकती हैं. KHOJ परियोजना की शुरुआत 2010 में हुई और जनवरी 2014 के पहले झूठे आरोपों के आधार पर फर्जी मुक़दमे के तहत बैंक खाते जमा होने तक अच्छी तरह चली. कथित गबन का एकमात्र सबूत उन बैंक खातों में है. अगर वही बैंक अकाउंट ज़ब्त हो गए हैं, तो सेतलवाड़ द्वारा सबूतों के साथ छेड़छाड़ कैसे संभव है? यह पुलिस द्वारा उनको हिरासत में लिए जाने का षड्यंत्र है. आम तौर पर इस तरह के मामलों में हिरासती पूछताछ की कोई आवश्यकता नहीं होती. इसलिए यातना और धमकी जैसी रणनीतियों का इस्तेमाल करने के लिए इस हिरासत का दुरुपयोग करने की बहुत संभावना है.

केस की संक्षिप्त जानकारी

KHOJ केस रईस खान द्वारा दायर किया गया था जो उनका पूर्व कर्मचारी है और फिलहाल प्रतिशोधी शासन की एक कठपुतली है. वह पहले भी कई बार फर्जी केस दायर कर चुका है. पहले वह फोरम शॉपिंग (अनुकूल निर्णय देने वाले मंच) चला गया और सेतलवाड़ और उनकी टीम के खिलाफ एक दर्जन से भी अधिक विभिन्न मामले दायर किये, जिसके बाद उसे केंद्रीय वक्फ काउंसिल के ओहदे के माध्यम से इनाम दिया गया. जो वकील रईस खान की पैरवी कर रहे हैं वे गुजरात राज्य और सरकार के खातों के पालतू वकील हैं. इस केस में भी पहले खान CBI और MHRD में अपने पाँव जमाने की कोशिश की, फिर वहाँ भी काम नहीं जमा, तो अहमदाबाद क्राइम ब्रांच में जाकर शरण ले ली और क्राइम ब्रांच को माध्यम बनाया. रईस खान द्वारा की गई एक शिकायत में तो उसने खुद स्वीकार किया है कि उसे 2014 में हुई ‘गड़बड़ियों’ के बारे में मालूम था, मगर फिर भी उसने चार साल बाद शिकायत दर्ज कराई. इससे यह पता चलता है यह जानबूझकर किसी की शह से किया गया है. तीस्ता सेतलवाड़ ने पहले 2016 में और फिर 2018 में केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर के साथ एक पत्राचार के माध्यम से HRD मंत्रालय द्वारा मामले में चल रही जांच जानकारी के लिए अनुरोध किया था और साथ ही शिकायत में ‘बारी कमिटी रिपोर्ट’ की कॉपी देने का भी अनुरोध किया था. बारी कमिटी की नियुक्ति पूर्व मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति इरानी द्वारा की ही गई थी.

HRD मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को लिखे दो पत्र यहाँ पढ़े जा सकते हैं:

 

 

कानूनी प्रक्रिया में पूर्ण सहयोग और इन्साफ पर भरोसा

आवेदक जावेद आनंद और तीस्ता सेतलवाड़ ने गुजरात उच्च न्यायलय में जावेद आनंद द्वारा जमा किये एक अतिरिक्त हलफनामें में कहा है कि 5, अप्रैल 2018 तक बॉम्बे उच्च न्यायलय ने अपने ट्रांजिट बेल आवेदनों को आगे बढ़ाया था. इसके बाद उन्होंने एक और बात न्यायलय में रखी कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 9 अप्रैल, 2018 तक उनके ट्रांजिट जमानत आवेदनों को आगे बढ़ाया था.

दोनों ही केसों में दस्तावेज़ी सबूत से सम्बंधित मामला और इसके बाद हुई हवालाती पूछताछ न सिर्फ गैर ज़रूरी थी, बल्कि क़ानून और न्यायशास्त्र के सिद्धांतों के भी विरुद्ध थी. आवेदक जावेद और सेतलवाड़ का यह भी मानना है कि यह सब कुछ इस मामले में उनके खिलाफ एक हवालाती यातनाएं देने का हथकंडा था.

आनंद ने अपने आवेदन में क्राइम ब्रांच की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए बताया कि किस प्रकार क्राइम ब्रांच इन मुद्दों पर राजनैतिक रूप से प्रेरित होकर बार-बार हवालाती पूछताछ करने की मांग करती है.

तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद, दोनों पर एफआईआर दर्ज होना और इस तरीके की जांच होना बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर दोनों ने पूरे तरीके से हर जांच में कानूनी व्यवस्था में विश्वास बनाए हुए अपना सहयोग दिया है. 6 अप्रैल , 2018 को वे दोनों क्राइम ब्रांच के सामने प्रस्तुत हुए, उसके बाद 11 मई, 2018 को जावेद आनंद एक जांच एजेंसी के सामने गए और उनपर लगे सभी सवालों का जावेद ने जवाब दिया तथा उससे जुड़े सारे ज़रूरी दस्तावेज़ जांच एजेंसी को समय पर सौंप दिए.

6 अप्रैल, 2018 को क्राइम ब्रांच की जांच टीम के सामने जाने से पहले तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद ने अपने मौखिक बयान में यह बात बतायी कि HRD मंत्रालय ने KHOJ परियोजना का समर्थन किया था और इसका गुजरात के किसी स्कूलों और गतिविधियों से कोई सम्बन्ध नहीं था. उन्होंने यह भी बताया कि अहमदाबाद के CJP ऑफिस का घेरे में आये इस परियोजना से कोई सम्बन्ध नहीं है और न ही HRD मंत्रालय द्वारा दिए अनुदान का एक पैसा CJP ऑफिस के किसी काम या कर्मचारी पर खर्च किया गया है. क्राइम ब्रांच द्वारा मांगे जाने वाले सभी दस्तावेज़ और मामले के रिकॉर्ड उन्हें सौंप दिए गए थे.

व्यक्तिगत खर्चों के लिए फंड से कुछ नहीं लिया

जावेद आनंद ने अपने ऊपर अनुदान को व्यक्तगत खर्चे के लिए इस्तेमाल कर के आरोपों से इनकार करते हुए यह कहा कि, “ मैंने स्पष्ट रूप से इस बात से इनकार करता हूँ कि मिली हुई अनुदान राशि को मैंने अपने किसी व्यक्तिगत उदेश्य से उपयोग किया. सिर्फ आवेदकों को बदनाम करने के उदेश्य से यह झूठा आरोप लगाया गया है और यह पहली बार नहीं हो रहा है जब गुजरात पुलिस की क्राइम ब्रांच ने उनपर झूठे आरोप मढ़ने की साज़िश रची है, और वो भी ऐसी साजिशें जो ना ही किसी तथ्य पर आधारित हैं न ही किसी बैंक स्टेटमेंट जैसे रिकॉर्ड के दस्तावेज़ के आधार पर.”

सेतलवाड़ और आनंद ने यह भी बताया कि अनुदान राशि की तीनो किश्त ( 58,72,500 रु., 26,66,570 रु. और 54,20,848 रु.) वास्तव में मौजूदा सबरंग ट्रस्ट के खाते में जमा की गई थी.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के नियमों और शर्तों के अनुसार मंत्रालय के अनुदान के लिए एक अलग से खाता खोला जाना चाहिए. तो आखिर में, यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया, जुहू तारा रोड की शाखा में Sabrang-HRD नाम से एक खाता खोला गया, जिसमे सबरंग की सारी मिली धनराशी ट्रान्सफर कर दी गई गई थी. सेतलवाड़ और आनंद ने स्पष्ट किया कि KHOJ परियोजना से सम्बंधित सभी भुगतान केवल Sabrang-HRD खातों से ही किये गए थे.

आवेदक जावेद आनंद और तीस्ता सेतलवाड़ ने अपने तर्कों के सबूत के तौर पर सबरंग ट्रस्ट के फरवरी 2011, जुलाई 2012 और और जुलाई 2013 (उन महीनों का जब HRD मंत्रालय से अनुदान मिला था) के मासिक विवरण को सामने रखा और यह बताया कि उनके सभी फंड तुरंत सबरंग ट्रस्ट एचआरडी खाते में स्थानांतरित कर दिए गए थे.

एचआरडी प्रावधानों के अनुसार मासिक मानदंड

अपने आवेदन में, तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद ने अपने व्यक्तिगत खातों में अनुदान राशि के हस्तांतरण के बारे में लगे सभी आरोपों से इंकार किया और कहा कि यह सभी आरोप “आधारहीन हैं और किसी दस्तावेजी साक्ष्य द्वारा समर्थित नहीं हैं”. उन्होंने यह भी दर्शाया कि उन्हें HRD मंत्रालय द्वारा अनुमोदित बजटीय प्रावधान और सबरंग ट्रस्ट के ट्रस्टी के प्रस्तावों के अनुसार मासिक मानदंड का भुगतान किया गया था तथा यह कहा कि उन्हें मानदंड राशि उनके ट्रस्टी के आधार पर नहीं बल्कि ट्रस्टी द्वारा परियोजना निदेशक (तीस्ता सेतलवाड़) और परियोजना प्रशासन (जावेद आनंद) के रूप में कार्य करने के लिए कार्यकारी ज़िम्मेदारी के बदले में मिली.

तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद ने क्राइम ब्रांच द्वारा मिल रही रही लगातार यातनाओं के बारे में बताते हुए इस बात पर भी प्रकाश डाला कि किस प्रकार क्राइम ब्रांच कोर्ट को गुमराह कर रही, जबकि उन्हें अभ्यस्त अपराधियों को पकड़कर न्याय की खोज में निकले कमज़ोर और हाशिये में पड़े लोगों के लिए प्रतिबद्ध किया. गुजरात पुलिस के अलावा क्राइम ब्रांच को भी निरंतर उत्पीड़न और न्यायलयों के कई दौर को सुनिश्चित करने के लिए तैनात किया गया है.

आखिर में दोनों ने बताया कि 20 जनवरी, 2014 को क्राइम ब्रांच ने एक गैर कानूनी ऑर्डर के ज़रिये उनके व्यक्तिगत खातों को बंद कर दिया गया है और पूरी जानकारी जांच एजेंसी के पास होते हुए भी आरोपों के चलते वह खाते बंद ही रहे. जब तक यह खाते जमा नहीं हुए थे तब तक ऐसा कुछ भी नहीं था जो सेतलवाड़ और आनंद न कर पा रहे हों. इसलिए उन्होंने यह सवाल उठाया कि जांच एजेंसी क्यों अभी भी उन्हें परेशान कर रही है? क्यों बार बार डराने धमकाने की कोशिश कर रही है?

सभी बाधाओं के बावजूद, मानवाधिकार कार्य जारी है

2014 से अब तक CJP संचालक सेतलवाड़ और आनंद को कई बार निशाना बनाया गया और सेतलवाड़ को हवालाती यातनाओं से बचने के लिए 9 बार अग्रिम ज़मानत लेनी पड़ी! मगर यह सब चीज़ें भी उन्हें एक भावुक और कठोर मानवाधिकार के एजेंडे के तहत काम करने से नहीं रोक पायी. CJP आगे भी 2002 गुजरात नरसंहार के पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करेगा. साथ ही, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के आदिवासियों और वन श्रमिकों के हक के लिए भी CJP लगातार उनका साथ दे रहा है और आगे भी देता रहेगा, तथा उन पर लगे झूठे केसों के खिलाफ भी CJP अपनी जंग जारी रखेगा.

सेतलवाड़ के एक पत्रकार और एक शिक्षाविद् के रूप में काम अभी भी जारी है. आनंद CJP के सदस्य होने के साथ-साथ इंडियन मुस्लिम्स फॉर सेक्युलर डेमोक्रेसी (IMSD) के संस्थापक है. दोनों एक समानता पूर्ण और शान्तिपूर्ण भारत की परिकल्पना के प्रति प्रतिबद्ध हैं.

मानवाधिकार संरक्षकों के वकीलों ने गुजरात उच्च न्यायलय और सर्वोच्च न्यायलय द्वारा अग्रिम ज़मानत देने या न देने को लेकर कई तर्क रखे हैं, और जैसा कि हमारी हमारे पाठकों के प्रति प्रतिबद्धता रही है कि हम पाठकों को भी हर संभव कानूनी मदद प्रदान करेंगे.

गुजरात उच्च न्यायलय द्वारा अग्रिम ज़मानत पर हुए फैसले को यहाँ पढ़ा जा सकता है.

 

अनुवाद सौजन्य – मनुकृति तिवारी

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