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धर्मान्तरण कानून के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल और मध्य प्रदेश को पक्षकार बनाने की दी अनुमति Jagran

18, Feb 2021 | Tanisk

नई दिल्ली, पीटीआइ। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अंतर-धर्म विवाह के कारण होने वाला धर्मान्तरण के खिलाफ बनाए गए कानून को चुनौती देने वाली एक गैर-सरकारी संगठन की याचिका पर हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी। इसके अलावा मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने देशभर में इन कानूनों के तहत बड़ी संख्या में मुसलमानों के उत्पीड़न के आधार पर मुस्लिम संस्था जमीयत उलमा-ए-हिंद को भी पक्षकार बनाने की अनुमति दी है।

सुप्रीम कोर्ट ने छह जनवरी को उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के ‘गैरकानूनी धर्मांतरण’ के नए कानूनों की जांच करने पर सहमति व्यक्त की थी। पीठ में शामिल जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम ने कानून पर रोक लगाने से इन्कार कर दिया था और दो अलग-अलग याचिकाओं पर दोनों राज्य सरकारों को नोटिस जारी किए थे।

वकील विशाल ठाकरे और एक गैर सरकारी संगठन सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस की याचिका दायर की है। विशाल की याचिका में उत्तर प्रदेश के गैरकानूनी धर्मांतरण कानून-2020 और उत्तराखंड के धार्मिक स्वतंत्रता कानून 2018 की वैधानिकता को चुनौती दी हई है। याचिका में कहा गया है कि ये कानून संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इन कानूनों से पसंद का जवनसाथी चुनन के अधिकार का भी हनन होता है।

पिछली  सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि ऐसा ही मामला इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबित है। हाई कोर्ट इस मामले पहले गी संज्ञान ले चुका है।  इस पर प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसे यह मामला हाई कोर्ट में उठाना चाहिए। वकील ने कहा कि उनकी याचिका में उत्तर प्रदेश के कानून को चुनौती दी गई है। जब कोई मामला दो राज्यों का हो तो उस पर सुप्रीम कोर्ट को ही सुनवाई करनी चाहिए।

गैर सरकार सगंठन सिटिजन जस्टिस एंड पीस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील सीयू सिंह ने कोर्ट में मतांतरण कानून पर अंतरि रोक लगाने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि इस कानून की आड़ में लोगों को सताया जा रहा है।  कोर्ट न रोक लगाने से इन्कार करते हुए कहा कि वह अभी नोटिस जारी कर रहे हैं। पक्षकारों को सुने बगैर मामले में आदेश जारी नहीं किया जा सकता।
The original piece may be read here

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