खोज केस: गुजरात हाई कोर्ट ने तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद को दी अग्रिम ज़मानत न्याय और सच्चाई की हुई जीत
12, Feb 2019 | CJP Team
पत्रकार, शिक्षाविद् और मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ को गुजरात उच्च न्यायालय से एक बड़ी जीत हासिल हुई है. गुजरात उच्च न्यायालय ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सर्व शिक्षा अभियान कार्यक्रम के तहत तीस्ता सेतलवाड़ के एनजीओ खोज को प्रदत्त धन का दुरूपयोग करने के मामले में अग्रिम ज़मानत दी है. अदालत ने उनके सहयोगी पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता जावेद आनंद को भी जमानत दी है.
मामले का संक्षिप्त विवरण
खोज मामला, इससे पहले भी रईस खान द्वारा (जो 2018 में तीस्ता के एनजीओ सिटीजंस फॉर जस्टिस एंड पीस के एक असंतुष्ट पूर्व कर्मचारी थे) शिकायत दर्ज कराई गई थी. रईस खान ने अपनी एफआईआर में सेतलवाड़ के ख़िलाफ़ कई बेबुनियाद आरोप लगाए थे. रईस खान ने उसमे कहा था कि जावेद आनंद ने सर्व शिक्षा अभियान के तहत चल रहे एनजीओ के लिए धन एकत्रित किया, पर उपयोग निजी उद्देश्यों के लिए किया गया.
शिकायत में यह भी कहा गया है कि धन का उपयोग ऐसी सामग्रियों के प्रकाशन और वितरण के लिए किया गया था जो सांप्रदायिक असामंजस्य का कारण बन सकते हैं. रईस खान ने पहले सीबीआई, फिर एमएचआरडी में इस शिकायत को दर्ज कराने की कोशिश की पर जब वहां उनका काम नहीं बना तब अपराध शाखा में उसके सहयोगी उसकी सहायता के लिए आए.
मार्च 2018 में पहली बार दर्ज हुए इस मामले की जांच में तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद दोनों ने पूरी तरह से सहयोग किया है. लेकिन फिर भी राज्य इन्हें हिरासत में लेकर कैद करने की कोशिशों में लगा हुआ था, और इस बात की पूरी संभावना थी कि हिरासत में लेकर इन सामजिक कार्यकर्ताओं यातना भी दी जा सकती थी.
5 अप्रैल को बॉम्बे हाईकोर्ट के जस्टिस रेवती मोहिते डेरे ने तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद को 2 मई, 2018 तक के लिए अंतरिम जमानत दे दी. माननीय न्यायालय के आदेशों के अनुसार, तीस्ता सेतलवाड़ और जावेद आनंद 6 अप्रैल को सुबह 10 बजे अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के सामने पेश हुए. दोनों ने शाम 5 बजे के बाद तक सभी सवालों के जवाब में अपने-अपने बयान दिए. उन्होंने जांच में सहायता के लिए सभी आवश्यक दस्तावेजी साक्ष्य भी प्रस्तुत किए.
24 मई, 2018 को अहमदाबाद सेशंस कोर्ट ने CJP की सचिव और ह्यूमन राइट्स डिफेंडर तीस्ता सेतलवाड़ और उनके साथी जावेद आनंद की अग्रिम ज़मानत याचिका को ठुकरा दिया था. हालांकि, डरा धमका कर कदम रोकने के राज्य के पक्षपातपूर्ण फैसले से विचलित न होकर तीस्ता सेतलवाड़ ने गुजरात उच्च न्यायालय में इस आदेश को चुनौती दी.
अदालत ने मामले की सुनवाई शुरू की और 24 अगस्त, 2018 को उसने फ़ैसला सुरक्षित किया, 6 महीने तक चली प्रक्रिया के बाद अंत में 8 फरवरी, 2019 को फैसला सुनाया.
सेतलवाड़ और आनंद को लगातार निशाना बनाया गया है
सेतलवाड़ और आनंद लगातार थोपे जा रहे झूठे मामलों की श्रृंखला से जूझ रहे हैं, जिनमें से खोज एनजीओ का मामला सबसे नया है. सरकार समर्थित ढर्रे से अलग हटकर सीजेपी की सचिव तीस्ता सेतलवाड़ ने आम नागरिकों के हित में कार्य करने का रास्ता चुना, जिस कारण 170 आरोपियों पर दोष साबित हो पाए, इनमे से 120 को आजीवन कारावास की सज़ा हुई. यही मुख्य कारण है जिसके चलते शासन इनके ख़िलाफ़ बदले की भावना से कार्य कर रहा है.
ज़ाकिया जाफ़री मामले के रूप में जारी ऐतिहासिक कानूनी लड़ाई, भी अपराधों में लिप्त रसूखदारों के गले की फांस बना हुआ है. सेतलवाड़ और आनंद की व्यक्तिगत स्वतंत्रता को ख़त्म करने के लिए उन्हें इस तरह से डराना धमकाना शासन का पुराना रवैया रहा है.
तीस्ता सेतलवाड़ एक मानवाधिकार रक्षक हैं तीन दशकों से वे इस क्षेत्र में साहसिक कार्य कर रही हैं. खोज के इस मामले से पहले भी उन्हें आठ बार झूठे आपराधिक मामलों में अग्रिम जमानत लेनी पड़ी है. आनंद को भी अब तक तीन बार झूठा फंसाया गया है.
कौन है रईस ख़ान?
रईस ख़ान 2010 से सीजेपी के क्षेत्र समन्वयक के रूप में कार्य कर रहे थे जहां इन्हें पारिश्रमिक और किराए का आवास भी प्रदान किया गया था. ख़ान ने 32 महीनों बाद अपनी सेवाएं बंद कर दीं तभी से वे झूठी व दुर्भावनापूर्ण शिकायतें करते आ रहे हैं, पहले इन्होने तीस्ता सेतलवाड़ पर झूठे आरोप लगाए और फिर सेतलवाड़ और आनंद दोनों पर. तीस्ता को पहली बार 2004 में गुजरात राज्य शासन का सहारा लेकर निशाना बनाया गया जिसने मुख्य गवाह ज़ाहिरा शेख को प्रभावित किया था.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट ने तीस्ता सेतलवाड़ और सीजेपी को सभी झूठे व निराधार आरोपों से दोषमुक्त किया और ज़ाहिरा शेख़ को प्रभावशाली राजनेताओं के प्रलोभन में आ कर कार्य करने का दोषी पाया. 2006 में ज़ाहिरा को एक साल के साधारण कारावास की सजा सुनाई गई. सेतलवाड़ के ख़िलाफ़ झूठे आरोपों में अपहरण से लेकर अब तक के वित्तीय ग़बन तक के मामले शामिल हैं.
जाहिर है, आज दिल्ली में केंद्रीय वक्फ बोर्ड में नियुक्त होने वाले शासन के संरक्षण का आनंद लेने वाले रईस खान के पास वरिष्ठ वकील भी हैं, जो सत्तारूढ़ दल के साथ जुड़े हुए हैं. सितम्बर 2010 के बाद से खान द्वारा दायर बेबुनियाद मामलों में उसे प्रशासन का सहयोग व सामान्य से बढ़कर अनुकूल वातावरण दिया जा रहा है खासकर गुजरात 2002 मामलों की सुनवाई, नानावती शाह आयोग, एसआईटी और अब गुजरात पुलिस की अपराध शाखा में.
दो निर्णयों में, सरदारपुरा मामले में और नरोडा पाटिया मामले में, न्यायाधीशों ने रईस खान के खिलाफ टिप्पणी करते हुए कहा है कि रईस खान के आचरण न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप कर रहे हैं और न्याय प्रक्रिया बाधित कर रहे हैं.
अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव
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