न्याय, सुधारक होना चाहिए, दण्ड देने वाला नहीं : तीस्ता सेतलवाड़ सीजेपी मौत की सज़ा का विरोध करता है
26, Oct 2018 | तीस्ता सेतलवाड़
हम अपने सम्पूर्ण प्रयास और पूरे भरोसे के साथ इस बात पर अपनी प्रतिबद्धता ज़ाहिर करते हैं, कि न्याय, सुधार के लिए एक उपकरण है, प्रतिशोध के लिए नहीं. पिछले 15 वर्षों में, हमने 2002 के गुजरात जनसंहार से संबंधित विभिन्न मामलों का 68 से अधिक अदालतों में नेतृत्व किया है. इन मामले में हमने सफलतापूर्वक 168 लोगों को सज़ा भी दिलवाई है, पर इनमे से एक के लिए भी मृत्युदंड की मांग हमने कभी नहीं की.
ऐसा इसलिए है क्योंकि बदला लेना एक जवाबी बदले का कारण बनता है, क्रोधवश की गई कार्रवाई क्रोध को ही बढ़ावा देती है, नफ़रत के बदले नफ़रत ही मिलती है प्रेम कतई नहीं, और खून की प्यास का कोई अंत नहीं होता. गुलबर्ग सोसाईटी जनसंहार जैसे भयानक मामले में भी जिसमें कांग्रेस सांसद एहसान ज़ाफरी की निर्दयतापूर्वक हत्या कर दी गई थी और कईयों को जिंदा जला दिया गया था. आरोपियों में से कई दोषी साबित हुए. सीजेपी ने यह सुनिश्चित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि इस मामले के “संगीनतम” श्रेणी में आने के बावजूद याचिकाकर्ताओं ने आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग नहीं की है.
सीजेपी दृढ़ता से मृत्युदंड के खिलाफ खड़ा है. आपराधिक न्याय सुधार के क्षेत्र में सीजेपी के काम के बारे में और अधिक जानने के लिए, अदालतों में और आदालतों से बाहर चल रहे हमारे अभियानों को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हम आपसे निवेदन करते हैं कि साथ जुड़िए और हमारे समूह का सदस्य बनिए.
इसी तरह, नरोडा पाटिया मामले में, जहां हिंसक और अपमान के कई भयानक उदाहरण सामने थे, सीजेपी ने एक बार फिर न्याय को सुरक्षित करने की दिशा में काम किया, यहां तक कि इस मामले में भी हमने मृत्युदंड की मांग नहीं की थी. सीजेपी की सचिव और मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ कहती हैं, “नरोडा पाटिया जनसंहार, क्रूर, अमानवीय, भयानक और शर्मनाक था. इसे ‘संगीनतम (रेयरेस्ट ऑफ़ द रेयर)’ की श्रेणी में रखा गया था, लेकिन हमने मृत्युदंड की मांग नहीं करने का फैसला किया क्योंकि यह मानव जीवन की गरिमा को कमजोर करता है.”
अब जब हमने महिलाओं के अधिकारों और बाल अधिकारों से संबंधित मामलों को सम्मिलित करने के लिए अपने काम के दायरे का विस्तार किया है, तब भी हम बाल यौन शोषण और बलात्कार के मामलों में भी मृत्युदंड के खिलाफ दृढ़ता से खड़े हैं.
अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव
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