Menu

Citizens for Justice and Peace

मैं रोती और गिड़गिड़ाती रही, मगर पुलिस वाले मुझे घसीट ले गये : रष्मिनारा बेग़म असम में भारतीय नागरिकता पर प्रश्नचिंह - एक CJP श्रृंखला

25, Jun 2018 | डेबरा ग्रे

यह कहानी असम के निवासियों पर हमारी श्रृंखला की एक कड़ी है, जिन्हें नागरिकता निर्धारित करने की कथित रूप से त्रुटिपूर्ण और मनमानी प्रक्रिया के बाद विदेशी घोषित किया गया है. हालाकि 30 जून, 2018 को नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) की अंतिम सूची जारी होना अभी बाकी है, कागज़ात में मामूली विसंगतियों के कारण हज़ारों लोगों से उनकी नागरिकता छीनी जाने का डर है. ऐसे कई राज्यहीन लोग बांग्लादेश निर्वासन के लिए लंबित बंदी शिविरों में क़ैद हैं, और कई तो क़ैद के डर से फरार भी हो गए हैं! यह एक कहानी है रष्मिनारा बेग़म की जो गर्भावस्था में हिरासत में ली गयीं और लाख मिन्नतों के बावजूद बंदी शिविर पहुंचा दी गयीं.

 

नन्ही नज़िफ़ा यासमीन लगभग साल भर की है. उसने अभी ठीक से चलना भी नहीं सीखा मगर आज किसी कारण वह थोड़ी बेचैन है और अपने गोआलपारा, असम स्थित अपने पूरे घर में लड़खड़ाते हुए एक कमरे से दूसर कमरे में चक्कर लगा रही है. जैसे ही वह ज़मीन पर पड़े ज़रूरी कागजात पर पैर रखने लगती है, उसकी माँ रष्मिनारा बेग़म उसे उठाकर गोदी में बिठा लेती है और प्यार से कहती है, “यह बच्ची बड़ी किस्मत लेकर आई है. इसके दुनिया में आने की वजह से ही मैं जेल से बाहर निकल पाई.”

रष्मिनारा बेग़म और उनकी बेटी नज़िफ़ा यास्मीन
CJP इस निर्दयी और अमानवीय प्रशाशन का खंडन करता है जो एक माँ को अपने बच्चों से अलग करता है और एक गर्भवती महिला को सलाखों के पीछे क़ैद करता है. हम विदेशी घोषित करने की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाते हैं. असम में हमारे अभियान के बारे में और जानने के लिए, कृपया यहां हमारी याचिका को पढ़ें और हस्ताक्षर करें और हमारे प्रयासों का समर्थन करें.

2016 में, संदिग्ध बांग्लादेशी होने की आशंका के कारण रष्मिनारा को एक नोटिस दिया गया जिसमें उन्हें विदेशी न्यायाधिकरण (FT) के समक्ष प्रस्तुत होने के आदेश दिए गए थे. सारे ज़रूरी दस्तावेज़ जमा करने के बावजूद उनको झटका तब लगा जब FT ने उन्हें विदेशी घोषित कर दिया. जन्मतिथि में त्रुटी के आधार पर ये फैसला लिया गया. दो अलग-अलग स्कूल छोड़ने वाले प्रमाणपत्रों (School Leaving Certificate) में जन्म की दो अलग-अलग तिथियां दीं गयीं थीं. हलाकि राष्मिनारा ने और भी कई दस्तावेज़ जमा किये थे जय की पंचायत का यह प्रमाणपत्र जो कहता है की शादी के बाद से रष्मिनारा अपने पति मनिरुल इस्लाम के साथ अपने ससुराल में रहती हैं.

मानिकपुर भेलाखामर का ग्राम पंचायत प्रमाणपत्र

 

2004 में आई बाढ़ में स्कूल सहित राष्मिनारा का गाँव भी ब्रह्मपुत्र नदी बहा ले गयी थी. परिवार से सम्बंधित सारे दस्तावेज़ खो गए जिसमें रष्मिनारा के दादाजी के स्वतंत्रता सेनानी होने का एक प्रमाणपत्र ऐसा भी ठ जिसके अनुसार कहता था कि उनके दादा एक स्वतंत्र सेनानी थे और साथ ही कांग्रेस के नेता भी. स्कूल के बाबू द्वारा उनके जन्मतिथि की त्रुटी का सुधार करने के लिए अब कोई ऐसा कागज़ नहीं बचा है जो वे सलग्न कर सकें. 9 नवंबर, 2016 को उन्हें उत्तर असम में कोकराझार बंदी शिविर में स्थानांतरित कर दिया गया.

वे भयावह दृश्य याद करते हुए बताती हैं, “मैं तीन महीने के गर्भ से थी और जेल जैसी जगह मेरे लिए ठीक नहीं थी. मैं रोती और गिड़गिड़ाती रही, मगर पुलिस वाले मुझे घसीट ले गये.” उनकी तीन और बेटियाँ हैं. अपनी बेटी मोरियम, जो अपने पिता मनिरुल के बगल से हटने को तैयार नहीं है, को देखते हुए रष्मिनारा बताती हैं “मेरी बेटी, मोरियम सिर्फ 4 साल की थी. जिस दिन मुझे पुलिस ले गयी उस दिन से इसके दिल में दहशत बैठ गयी. आज भी किसी पुलिस वाले को देखती है तो डर के मारे बिस्तर के नीचे छिप जाती है. उसे लगता है की जिस तरह वे मुझे उठा कर ले गए थे, एक दिन उसे भी ले जायेंगे.”

राष्मिनारा बेगम के परिवार का NRC आवेदन पत्र

 

घोषित विदेशी बंदियों के लिए कोई अलग शिविर नहीं हैं. वे असम के छ: स्थानिय जेलों में अस्थाई रूप से चलाए जा रहे बंदी शिविरों में रखे जाते हैं. यह जेलें कोकराझार (जहाँ महिलाओं को रखा जाता है), गोआलपारा, तेज़पुर, सिलचर, धिब्रुगढ़ और जोरहट में स्थित हैं. “जेल के आगे के हिस्से में पुरुष अभियुक्तों को रखा जाता है, और पिछले हिस्से में महिलाओं को. इन महिलाओं में कुछ तो हत्या जैसे संगीन जुर्मों में दोषी पाई गईं हैं!” राष्मिनारा बताती हैं. “मेरे जैसे 136 घोषित विदेशियों और संदिग्ध मतदाताओं (D-Voter) को उनके साथ वहाँ रखा गया. वह छोटी सी जगह में भीड़ से भरा हुआ अतिसंकुल स्थान था,” राष्मिनारा याद करते हुए कहती हैं. “लेकिन हमें एक समूह बनाकर बात करने की इजाज़त नहीं थी,” रष्मिनारा बताती हैं. “साथ ही, अभियुक्त अपराधियों और घोषित विदेशियों को अलग-अलग नहीं रखा गया था, जिसके कारण वे अपराधी महिलाएं हमें डराती और धमकाती थीं. मैं चार ऐसी लड़कियों के साथ रही जो हत्या के जुर्म में अभियुक्त थीं!”

“मुझे दो वक़्त की रोटी मिल जाती थी और जेल में एक डॉक्टर भी था. मगर एक गर्भवती महिला की अन्य ज़रूरतें भी होती हैं. खाना बड़ा ही बेस्वाद और बेकार किसम का था मगर मैं फिर भी ज़बरदस्ती दिल पर पत्थर रख कर खा लिया करती थी क्योंकि मेरे भीतर भी एक जीवन पनप रहा था,” वे कहतीं हैं. उनके पति और बेटियाँ उनसे मिलने आ सकते थे, पर पका हुआ खाना देने की अनुमति नहीं थी. वे उनके लिए साफ़ कपड़े, साबुन और सूखा खाना जैसे फल ले आते थे. 500 रुपये से ज्यादा पैसे देना भी वर्जित था. यूँ तोह यह एक बड़ी धनराशि नहीं थी, लेकिन फिर भी उल्लेखनीय थी क्योंकि जेल के कैदियों को तो जेल में काम करके कमाने की इजाज़त होती है. परन्तु रष्मिनारा जैसे घोषित विदेशियों के पास यह विकल्प नहीं होता.

इस बीच, FT के फैसले के खिलाफ उन्होंने गुवाहाटी उच्च न्यायलय में गुहार लगायी. “जब बच्चे को जन्म देने का समय आया, तब मुझे मई 2017 में कोकराझार R&D अस्पताल ले जाया गया. जन्म देने के बाद, मैं वहाँ एक महीना रही, फिर किसी स्थानीय नेता के ज़रिये बंदी शिविर लौटने से बच सकी” वे बताती हैं. राष्मिनारा को गुवाहाटी उच्च न्यायलय से तीन महीने का दण्डविराम दिया गया ताकि वे अपने नवजात शिशु को स्तनपान करा सकें. इस बीच, विपक्षी दल के नेता ने हस्तक्षेप किया और उनकी तरफ से एक याचिका दायर की और प्रार्थना की कि अदालत उनकी विशेष परिस्थितियों को ध्यान में रखे. आखिरकार, सर्वोच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि रष्मिनारा अपने मामले में अंतिम निर्णय आने तक घर पर रह सकती हैं.

सर्वोच्च न्यायलय में रष्मिनारा की याचिका

मोनिरुल, जो पेशे से एक दर्जी है, अपने बच्चों की माँ को घर में पाकर बहुत खुश हैं. अपनी दो बेटियों से घिरे हुए मोनिरुल कहते हैं कि “जब मेरी पत्नी जेल में थी, तो मैंने उन्हें बाहर निकालने के लिए हर दरवाज़ा खटखटाया. उनकी माँ ने बच्चों को संभालने में बहुत मदद की. अब मैं और मेरी पत्नी बच्चों के साथ समय बिता सकते हैं.”

“मेरे दादा ने इस देश को आज़ाद करवाने में अपना योगदान दिया. मेरा भाई ज़ाकिर हुसैन एक सरकारी अफसर है. तो मैं कैसे विदेशी हो गयी?” रष्मिनारा उलझे हुए से सवाल करतीं हैं, जबकि साथ खड़ी हुई यास्मीन भूख लगने का साफ़ तौर पर इशारा कर रही है. हम एक शांत सी स्तनपान कराती हुई माँ को पीछे तो छोड़ आये मगर प्रशासन की उस क्रूरता को दिमाग से निकालना आसान नहीं जिसने एक गर्भवती महिला को बंदी शिविर में रहने पर मजबूर कर दिया था. मोरियम अपने पिता का साथ छोड़ दरवाज़े तक हमें विदा करने आई. हम बस सोच रहे थे कि क्या वह हमेशा इसी तरह पुलिसवाले से डरती और बिस्तर के नीचे छिपती रहेगी.

अनुवाद सौजन्य – सदफ़ जाफ़र, मनुकृति तिवारी, अमीर रिज़वी और डेबरा ग्रे

 

और पढ़िए –

असम में राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर के कारण फैला मानवीय संकट

तीस्ता सेतलवाड़ की जमशेर अली के साथ ख़ास बातचीत

 

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Go to Top