गड़े मुर्दे उखाड़ना और झूठी ख़बरों का प्रसार प्रचार करना आज के दौर में इतना ज़रूरी हो गया है कि जब भी अल्पसंख्यकों के बारे में कोई भी खबर आती है तो साथ में आती है एक ‘कांस्पीरेसी थ्योरी’ या एक षड्यंत्र का मत, जिसके ज़रिये निराधार समानांतर सिद्ध करने की कोशिश की जाती है. कठुआ में घटित बलात्कार और हत्या का मामला भी इससे ज्यादा अलग नहीं है. पर विचलित करने वाली बात यह है कि घटना के पश्चात् जानबूझ कर गलतफहमी फैलाने और नफरत भड़काने का अभियान छेड़ा गया और इस जघन्य अपराध का ठीकरा रोहिंग्या शरणार्थियों के सर फोड़ने की कोशिश की गयी.
जब से कठुआ के बाहरी इलाके के जंगल में एक छोटी लड़की का लाश पाई गई, और इस कृत में प्रभावशाली और शक्तिशाली दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं और स्थानीय पुलिस की सहभागिता सिद्ध हुई थी, तब से ही जाने-माने दक्षिणपंथी समर्थक कई वेबसाइट और सोशल मीडिया अकाउंट्स के ज़रिये एकजुट होकर एक समानांतर कथा बुनने में लग गए थे.
सीजेपी का मानना है कि झूठे समाचार लोकतंत्र और शांति के खिलाफ एक खतरनाक हथियार है. नकली समाचारों और घृणास्पद भाषणों को कैसे पहचाने और रोके है, इस बारे में अधिक जानने के लिए, सीजेपी में शामिल हों, सदस्य बनें.
उदाहरण के तौर पर मधु किश्वर की यह ट्वीट, जो बच्ची के बलात्कार का दोषी रोहिंग्या मुसलमानों को ठहराती है:
यह नई कथा अभियुक्तों को उनके अपराधों से दोषमुक्त करने का प्रयास ही नहीं कर रही, बल्कि मुसलमानों पर, विशेष रूप से रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों पर भी आरोप लगाती है, जो हाल ही में इस क्षेत्र में आकर बसे हैं. आरोपी के पक्ष में आयोजित रैली से यह स्पष्ट होता है कि कथित तौर पर बलात्कारियों के समर्थकों को राष्ट्रीय ध्वज थामे देखा गया था, जो दावा कर रहे थे कि अभियुक्त वास्तव में निर्दोष हैं और उन्हें फँसाया जा रहा है.
कठुआ बलात्कार तथा हत्या और अन्य मामलों में झूठी समानताएं दर्शाने के कई प्रयास भी किए गए, जहां पीड़िता गैर-मुसलमान थी. कईयों ने तो ‘उदारवादियों’ पर चयनात्मक आक्रोश का आरोप तक लगा डाला:
हालांकि, कठुआ मामले में जिस बात को उन्होंने नज़रअंदाज़ कर दिया, वह थी कि अभियुक्तों के समर्थन में रैली ओर प्रदर्शन किये गए. वास्तव में, इन रैलियों में सत्तारूढ़ दल के उद्योग और वाणिज्य मंत्री चंद्र प्रकाश गंगा और वन मंत्री लाल सिंह उपस्थित थे. बाद में उन्होंने देश व्यापी नाराज़गी और बढ़ते दबाव के कारण इस्तीफा दे दिया.
शंखनाद नाम की एक वेबसाइट (जो अब उपलब्ध नहीं है)दक्षिणपंथी समर्थकों में खासी लोकप्रिय थी, उन्होंने निम्नलिखित साजिश के मतों को प्रकाशित किया जो कि सोशल मीडिया पर जल्दी से वायरल हो गए:
द क्विंट ने इन तमाम दावों को सच की कसौटी पर झूठा साबित कर दिया. जिसके बदले में शंखनाद ने यह प्रतिक्रिया ज़ाहिर की. लेकिन जिस तरह से रोहिंग्या को इस प्रकरण में उलझाया जा रहा था, वह विशेष रूप से दिलचस्प है. ख़ासतौर से तब जब जम्मू में हुए विरोध प्रदर्शनों में इस कोण का जमकर इस्तेमाल किया गया.
जम्मू प्रांत में पीपुल्स फोरम के नेता पवितर सिंह ने विरोध प्रदर्शनों का समर्थन करते हुए कहा, “रोहिंग्या जम्मू में अवैध तरीके से रह रहे हैं और हमारे समाज का अपराधीकरण करना चाहते हैं”. “हम विरोध प्रदर्शन करेंगे, जब तक कि सरकार राज्य से रोहिंग्या को हटा नहीं देती”, उन्होंने यूसीए न्यूज़ को बताया.
रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना क्यों बनाया जा रहा है?
जम्मू में लगभग 10,000 रोहिंग्या शरणार्थियों को बसाया गया है. इन परिवारों को स्थानीय राजनेताओं जैसे जम्मू और कश्मीर नेशनल पैन्थर्स पार्टी द्वारा पोस्टर और बैनर बनाकर, साथ-साथ राज्य में हाल ही में कथित रूप से उन्हें भयभीत करने के उद्देश्य से ‘बंद कॉल’ के दौरान लक्षित किया गया है. असल में, दक्षिणपंथी गुटों द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों को निकालने का अभियान 2017 में शुरू किया गया था.
जब से रोहिंग्या मुसलमानों का पलायन शुरू हुआ, वे बांग्लादेश में स्थित कॉक्स बाजार और बाकि शरणार्थी शिविरों में आने लगे. वे धीरे धीरे पश्चिम बंगाल या असम के रास्ते बांग्लादेश की सीमा पार करके, मानव तस्करों को भारी रकम देकर भारत में आ गए. वैसे भी इन क्षेत्रों ने बांग्लादेशी प्रवासियों (ज्यादातर हिंदू)की आबादी का तांता 1971 में बांग्लादेश युद्ध के बाद देखा गया है.
लेकिन जब मुसलमान प्रवासियों ने देश में प्रवेश करना शुरू किया, तब केसरिया समूहों ने बंगाल के इस्लामीकरण के बारे में चिंता जताई. मालदा और बशीरहाट में हुए हालिया सांप्रदायिक दंगों के दौरान मुसलमानों की घुसपैठ करने वाले की जाली ख़बरों और कहानियों ने आशंकाएं और बढ़ा दीं थीं. इसी प्रकार नफरत भड़काने के लिए स्थानीय महिलाओं और लड़कियों के क्रूर बलात्कार के विडियो, जो झूठे थे, स्पष्ट रूप से मुस्लमान अपराधियों के नामों के साथ वायरल किये गए. चूंकि ठीक तौर पर कहा नहीं जा सकता है कि कथित अपराधी भारतीय है या बांग्लादेशी या रोहिंग्या, दक्षिणपंथी विचारधारा से सहानुभूति रखने वालों ने वेबसाइटों और ट्रोल के ज़रिये खूब नफरत फैलाने का काम किया.
उदाहरण के तौर पर शंकनाद द्वारा किये इस ट्वीट पर नज़र डालिए, जहाँ ‘बलात्कार जिहाद’ के नाम पर कहानी गढ़ी गयी है.
यह एक बार फिर कथित तौर पर बलात्कारियों के धर्म की ओर ध्यान खींचता है और रोहिंग्या के खिलाफ मामला भी बना देता है. असम और बिहार में हत्या किए गए नाबालिगों के बारे में अन्य व्यापक रूप से साझा सामाजिक मीडिया पोस्ट को ‘बूम लाइव’ द्वारा सीधे तौर पर गलत सूचना, नकली कहानियां या अपराधों से न जुड़ी हुई छवियों का उपयोग को उजागर किया गया.
घिनौने साजिशकर्ता
कठुआ मामले में सोशल मीडिया पर झूठी कहानियाँ और नकली खबरों के होने के बावजूद ज्यादातर लोगों को मरी हुई बच्ची के प्रति शालीनता का रुख रखा था. हालांकि, एक कोच्चि के आदमी ने सोशल मीडिया पर कथित रूप से कहा:
अच्छा हुआ जो वह इस उम्र में ही मारी दी गयी, वर्ना बड़ी होकर वह भारत पर बम फेंकने के लिए वापस आती”
ट्विटर प्रयोक्ताओं की नाराज़गी के बाद उसको नौकरी से तुरंत निकाल दिया गया है.
इस बीच वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने मधु किश्वर के खिलाफ अपने ट्वीट के ज़रिये नफरत और हिंसा फ़ैलाने के लिए आईपीसी की धारा 153 ए, 295 ए और 505 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज की है.
सोशल मीडिया पर मुसलमानों का व्यापक रूप से दानवीकरण
सोशल मीडिया पर मुस्लिमों के दानवीकरण के कई अन्य उदाहरण मौजूद हैं. समुदाय को नियमित रूप से गायों, महिलाओं और हिंदू धर्म के लिए खतरे के रूप में दिखाया गया है, यही वजह है कि गौ-आतंकवाद या गौरक्षकों और एन्टी रोमियो दल के द्वारा अनजान युवाओं पर हिंसा के आतंक की वृद्धि हुई है.
हाल ही में मुस्लिमों द्वारा जैन भिक्षु पर हमले के बारे में एक नकली कहानी फैलाने के लिए ‘पोस्ट कार्ड न्यूज़’ के संपादक को गिरफ्तार किया गया था.
इसी तरह मुसलमान पुरुषों, लव जिहाद, बीफ खाने वाले लोग, हिंदू महिलाओं पर बेरहमी से यौन उत्पीड़न करने वाले वायरल नकली समाचार और कहानियां, मुसलमानों ने तिरंगा फहराने या राष्ट्रीय गान गाने से मना कर दिया, दलितों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए मजबूर किया जाना , ये सारी झूठी वायरल ख़बरों का निर्माण अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति घृणा फैलाने के लिए किया जा रहा है.
अनुवाद सौजन्य – सदफ़ जाफ़र