Site icon CJP

NRC दावा-आपत्ति प्रक्रिया में मौजूद हैं कई ख़ामियां

30 जुलाई 2018 को प्रकाशित हुए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के फाइनल ड्राफ्ट से 40,07,707 लोगों को बाहर कर दिया गया है. बाहर निकाले गए इन लोगों के लिए आख़िरी और एकमात्र उम्मीद है NRC की दावा-आपत्ति प्रक्रिया. हालांकि, ये प्रक्रिया आयोजित करने के लिए स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (SOP) का जो मानक रूप 16 अगस्त 2018 को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया था, वो लोगों को इस परेशानी का कोई वास्तविक समाधान सुझाने या उम्मीद बंधाने की क्षमता वाला नहीं लगा, बल्कि कुछ प्रावधान तो ऐसे भी लगे जो अगर वर्तमान स्वरुप में ही मान्य रहे तो उनका स्वार्थवश दुरूपयोग भी किया जा सकता है.

 

SOP का जो प्रारूप प्रस्तुत किया गया है वो शुरुआत में अपनाए गए SOP और SSOP के तौर-तरीकों से थोड़ा अलग है. हालांकि पूर्व में NRC समन्वयक द्वारा दिए गए दो विवादस्पद आदेशों के बाद इस नए प्रारूप पर भी संदेह बना हुआ है. वर्तमान NRC प्रक्रिया जल्दबाज़ी में और बगैर जाने परखे दिए गए NRC समन्वयक के उन विवादस्पद फैसलों को स्वीकृति प्रदान करती है.

NRC के अंतिम मसौदे से 40 लाख से ज़्यादा लोगों को बाहर कर दिया गया है. उनमें से ज़्यादातर सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों से संबंधित हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं. उनमें कई महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. गुजरात में कानूनी सहायता प्रदान करने के अपने पिछले अनुभव के आधार पर अब सीजेपी वकीलों और स्वयंसेवकों की बहु-पक्षीय टीम के साथ यहां भी ज़रूरी कदम उठाएगी, ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि इन लोगों को 15 सबसे ज़्यादा प्रभावित ज़िलों में दावा दायर करते समय उचित एवं पर्याप्त अवसर मिल सके. आपका योगदान कानूनी टीम, यात्रा, दस्तावेज़ीकरण और तकनीकी ख़र्चों की लागत को वहन करने में मदद कर सकता है. सहायतार्थ दान कीजिए!

SOP का ये नया प्रारूप NRC से बाहर किये गए 40 लाख से ज़्यादा लोगों की पुनर्विवेचना करने के उद्देश्य से भारतीय गृह मंत्रालय द्वारा सुप्रीम कोर्ट के सामने रजिस्ट्रार जनरल (आरजीआई), असम सरकार और असम की राज्य सरकार के अधिकारी, और असम में NRC प्राधिकरण के अधिकारियों के परामर्श से प्रस्तुत किया गया था.

मसौदे के प्रारूप और SOP की ख़ामियां

अविवाहित महिलाओं की दावेदारी कमज़ोर करता है

उदाहरण के लिए, नए SOP में ग्राम पंचायत द्वारा जारी किए गए दस्तावेज़ों (31 दिसंबर, 2015 या उससे पहले जारी दस्तावेज़) को सुप्रीम कोर्ट ने एक पृथक कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से NRC के लिए मान्य सहायक दस्तावेजों की श्रेणी में रखने की अनुमति दी थी. अब ये दस्तावेज़ केवल विवाहित महिलाओं के लिए ही मान्य होंगे अविवाहित महिलाओं के लिए नहीं. मसौदे की ये शर्त भ्रम पैदा करेगी और इसके दुष्परिणामवश अविवाहित महिलाओं का एक बड़ा समूह NRC की दावेदारी से वंचित रह जाएगा. क्योंकि पंचायत प्रमाणपत्र की अनुमति उन निवासियों के लिए बनाई गई थी, जिनके माता-पिता से संबंध स्थापित करने के लिए कोई अन्य दस्तावेज नहीं है.

नाबालिगों की दावेदारी कमज़ोर करता है

14 साल से कम उम्र के परिवार के नाबालिग सदस्यों के संबंध में इससे पहले वादा किया गया था कि यदि परिवार का वंशवृक्ष त्रुटिमुक्त पाया जाता है, तो ऐसे नाबालिगों के लिए लिंकेज प्रमाण पत्र परिवार के सदस्यों के मौखिक सबूत से स्वीकार्य हो सकते हैं. परन्तु सत्यापन के समय इस आश्वासन का पालन नहीं किया गया था जिसके कारण NRC के अंतिम ड्राफ्ट से लाखों  नाबालिगों को हटा दिया गया था. SOP के नए प्रारूप में, फिर से वही आश्वासन (जिसका पालन नहीं किया गया) दोहराया गया है. अब किस भरोसे में ये माना जाए कि वही पुरानी नौकरशाही, वही पुरानी संस्थागत उदासीनता जिसने इस आश्वासन को पिछली बार नज़रंदाज़ कर दिया था इस बार वो उसे मान कर उसका पालन करेगी. ये बात भला कैसे और किस भरोसे मान ली जाए.

दस्तावेज़ों की जटिलता उलझन पैदा करती है

किसी के जन्म लेने का प्रमाण होता है उसका जन्म प्रमाण-पत्र. परन्तु विडम्बना है कि बहुत से जन्म प्रमाण-पत्र यहां केवल इस आधार पर ख़ारिज कर दिए गए थे क्योंकि उन्हें निर्धारित अनिवार्य अवधि में जारी नहीं किया गया था. केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत SOP को अपने वर्तमान रूप में स्वीकार किए जाने पर यह अनुचित प्रक्रिया वैध हो जाएगी. NRC के अंतिम मसौदे से बाहर किए गए लोगों के नामों में उन व्यक्तियों के नाम शामिल हैं, जिन्होंने सभी संभावित दस्तावेजों के साथ अपने आवेदन दायर किए हैं. साथ-साथ दस्तावेजों में मामूली विसंगतियों के परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर, क्रूर बहिष्कार हुए हैं. अगर सरकार गंभीर और निष्पक्ष थी, तो उसे चाहिए था कि ऐसे सभी दस्तावेज़ों को संज्ञान में लेती और नए सत्यापित दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए लोगों को पर्याप्त अवसर भी देती. पर नहीं, यहां तो नीयत ही नदारद है.

लेगेसी डेटाबेस जो पहले सार्वजनिक हुआ करता था, अब बीते दो वर्षों से उसे गुप्त रखा जाता है. साथ ही, सभी सक्षम प्राधिकरणों को इन दस्तावेजों को जारी करने से रोक दिया गया था. SOP NRC प्रक्रिया के भीतर इस ज़मीनी स्तर की कार्यक्षमता को सम्मिलित नहीं करता है. इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत SOP को अद्यतन NRC से हज़ारों वैध नागरिकों को बाहर करने के लिए व्यापक षड्यंत्र का हिस्सा माना जा रहा है.

आपत्ति के तरीकों का दुरुपयोग किया जा सकता है

केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 2500 अधिकारियों को समस्त दावा-आपत्तियों के निपटारे के लिए मात्र दो महीनों का समय दिया गया है जो कि 15 दिसम्बर 2018 निर्धारित है. दावा-आपत्ति करने वालों की बड़ी संख्या के कारण ऐसा लगता है कि इस प्रक्रिया में लगभग डेढ़ साल का समय लग सकता है. सिर्फ़ इतना ही नहीं, दावा-आपत्ति प्रक्रिया कई और कारणों से भी समस्याग्रस्त साबित हो सकती है.

शुरुआत के लिए, कोई भी NRC में किसी और के नाम को शामिल करने पर आपत्ति कर सकता है. तो भले ही आप उन भाग्यशाली लोगों में से एक हों जिकना नाम NRC में शामिल हो गया है फिर भी, समस्या यहां ख़त्म नहीं हुई है, क्योंकि कोई भी कभी भी आपके नाम पर आपत्ति दर्ज करा सकता है. आपके नाप पर आपत्ति दर्ज कराने वाला व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का हो सकता है आपके नागरिक सेवा केंद्र का होना उसके लिए आवश्यक नहीं है. जब भी और जहां भी आपके नाम पर आपत्ति दर्ज होगी तब-तब इस आपत्ति को सुना जाएगा व उसकी जाँच की जाएगी. आपके लिए उस प्रक्रिया में शामिल होना और वहां उपस्थित होना अनिवार्य रूप से आवश्यक होगा, आपकी पसंद-नापसंद, सुविधा-असुविधा से कोई फ़र्क नहीं पड़ता, हर कीमत पर आपको वहां उपस्थित होना ही होगा. सोचिए कितनी अजीब स्थिति है कि किसी पूरी तरह से अजनबी व्यक्ति के पास, जिसका आपसे दूर-दूर तक कोई नाता नहीं है, आपकी नागरिकता, आपकी सुख-सुविधा, आपकी पूरी ज़िन्दगी पर सवाल उठाने का अधिकार दे दिया गया है.

इसके अलावा आपत्तियों की संख्या के लिए कोई निर्धारित सीमा अब तक तय नहीं की गई है. कोई भी कितनी भी आपत्तियां दर्ज करा सकता है. हर आपत्ति दर्ज करने के लिए शुल्क के रूप में यदि कोई राशी निर्धारित कर दी जाती तो ये भी आपत्तियों की संख्या को नियंत्रित करने का एक उपाय हो सकता था. इसके अलावा, यदि आपत्ति ग़लत साबित होती है तो आपत्ति दर्ज कराने वाले के लिए किसी भी तरह के दण्ड का कोई प्रावधान नहीं है. इसका मतलब यह भी है कि यदि आप के ख़िलाफ़ आपत्ति निराधार साबित हुई है, तो ऑब्जेक्टर को निर्दोष व्यक्ति को परेशान करने या अधिकारियों के समय और संसाधनों को बर्बाद करने के किसी भी परिणाम का सामना नहीं करना पड़ेगा.

ये सभी प्रावधान किसी की नागरिकता पर सवाल उठाने वालों को सशक्त बनाते हैं. लोगों को परेशान करने और उन्हें धमकाने की आसानी उनके हांथों में दे देते हैं. ये कहने की नहीं समझने की बात है कि ये सारे प्रावधान  सामाजिक और आर्थिक रूप से कमज़ोर लोगों के उत्पीड़न के लिए एक नई मशीनरी उपलब्ध करा रहे हैं. उन्हें एक ऐसे रण में धकेला जा रहा है जहां वो निहत्थे होंगे और हर परिस्थिति उनके ख़िलाफ़ होगी.

इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि ऑल असम स्टूडेंट यूनियन (AASU), ऑल असम मुस्लिम स्टूडेंट यूनियन (AAMSU) सहित सभी हितग्राहियों के विचार मांगे जाएंगे. साथ ही मामला 28 अगस्त तक स्थगित कर दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 16 अगस्त 2018 को प्रस्तुत किए गए अनुबंधों को यहां पढ़ा जा सकता है.

 

अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव

और पढ़िए –

चाय वाले की माँ

मैं रोती और गिड़गिड़ाती रही, मगर पुलिस वाले मुझे घसीट ले गये 

असम में राष्ट्रिय नागरिक रजिस्टर के कारण फैला मानवीय संकट

कैसे नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर असम में अल्पसंख्यकों के ‘अलगाव’ का कारण बनता है

आज़ाद हिन्द फ़ौज के जवान के परिवार का नाम असम के NRC में नहीं

भला एक 8 साल का बच्चा ‘संदिग्ध वोटर’ कैसे हो सकता है ?