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सीजेपी निशाने पर

हाल ही में, धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ मानव अधिकार संबंधी कार्य के प्रति अपनी वचनबद्धता के कारण सीजेपी सचिव तीस्ता सेतलवाड़ जी को दो टीवी समाचार चैनलों ने “हिंदुत्वविरोधी” कहा है. इस के कारणवश सीजेपी ने एनएचआरसी को इस में दखल देने का आग्रह किया, क्योंकि इस तरह की गैरजिम्मेदाराना और दुर्भावनापूर्ण रिपोर्ट ने सेतलवाड़ जी को निशाना बनाया है और उनके जीवन को खतरे में डाल दिया है. लेकिन यह पहली बार नहीं है कि सीतलवाड़ या सीजेपी के अन्य सदस्यों को राज्य या गैर-राज्य अभिनेताओं द्वारा लक्षित किया गया है. इस कालक्रम की व्यापक व्यवस्था की सूची पर एक नज़र डालें जिसमें प्रत्येक ऐसी घटना का विवरण दिया गया है.

 

सीजेपी निशाने पर

नवंबर 4, 2004 - वड़ोदरा में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में, गुजरात दंगा उत्तरजीवित ज़ाहिरा शेख ने तीस्ता सेतलवाड़ जी पर आरोप लगाया कि न केवल उन्होंने ज़ाहिरा को अपनी हिरासत में जबरन रखा, बल्कि सर्वोच्च न्यायलय में झूठा शपथ पत्र देने का पाठ भी पढ़ाया.
9 नवंबर, 2004 - बंबई उच्च न्यायालय ने गिरफ्तारी के खिलाफ सेतलवाड़ जी को 72 घंटे की सुरक्षा प्रदान की.
नवंबर 2017 – सर्वोच्च न्यायालय में दायर एक आवेदन (सीआरए) में, सेतलवाड़ जी ने कहा कि जिस तरह जाहिरा शेख मुकदमे के दौरान मुकर गई, इसके पीछे के तथ्यों को उजागर करने के लिए जाँच की जानी चाहिए. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रजिस्ट्रार जनरल के तहत एक विशेष जांच समिति नियुक्त की गई.
27 अगस्त 2005 - सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त रजिस्ट्रार जनरल ने अपनी जाँच में पाया कि जो ज़ाहिरा के आरोप थे जिसमें सेतलवाड़ जी पर ज़ाहिरा का अपहरण, दबाव बनाना और उसको झूठे तथ्य सिखाना शामिल था वे सब बेबुनियाद थे. उनकी जांच रिपोर्ट में सेतलवाड़ जी को सभी आरोपों में निर्दोष घोषित किया. रिपोर्ट में जाहिरा शेख, उसकी मां और बहन को झूठी गवाही का दोषी पाया. भाजपा के विधायक मधु श्रीवास्तव (एमएस शेख को पैसे देने का आरोप था) ने जांच के लिए अपनी आवाज परीक्षण के नमूने देने से मना कर दिया, जैसा उनके भाई चंद्रकांत भट्टू श्रीवास्तव ने किया. ज़ाहिरा के बैंक खाते में अनाधिकृत धन भी मिला.
8 मार्च, 2006 – सर्वोच्च न्यायालय, रजिस्ट्रार जनरल की रिपोर्ट को स्वीकारते हुए ज़ाहिरा को न्यायालय की अवमानना के लिए एक साल की कारावास की सजा देता है और उसपर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाता है.
अप्रैल 2009 - गुजरात पुलिस के कुछ एसआईटी अधिकारियों ने हिंसा के मामलों और गवाहों में झूठे आरोपों का निर्माण करने का आरोप एक गोपनीय रिपोर्ट में सर्वोच्च न्यायालय के सामने रखी. रिपोर्ट के इस हिस्से को (जो कि सुप्रीम कोर्ट में एक गोपनीय रिपोर्ट का हिस्सा है) एसआईटी द्वारा चुनिंदा मीडिया के वर्गों और शक्तिशाली राजनीतिक व्यक्तियों को जो गुजरात सरकार के नजदीकी माने जाते है थे उनके समक्ष गोपनीय रिपोर्ट के भाग को लीक कर दिया गया है. एक गोपनीय रिपोर्ट के इस लीक करने पर सर्वोच्च न्यायालय नाराजगी व्यक्त करता है. वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, जो तब गुजरात सरकार के प्रतिनिधि थे, ने सीएनएन-आईबीएन पर वक्तव्य दिया और सर्वोच्च न्यायालय से कहा कि उन्होंने मीडिया से बात नहीं की है. रोहतगी को 2014 के बाद भारत का एटर्नी जनरल नियुक्त किया गया और अब उन्होंने इस्तीफा दे दिया है. आई ओ सुथर सहित कुछ एसआईटी सदस्यों ने सेतलवाड़ जी पर झूठे आरोप मढ़ने की कोशिश की कि उन्होंने हत्याओं के फर्जी मामले तैयार करवाए और पुलिस प्रमुख पी सी पाण्डे पर गलत आरोप लगाये हैं. तीस्ता पर झूठे गवाहों को तैयार करने और काल्पनिक हत्याओं के विषय में गवाही दिलवाने का भो आरोप लगाया गया. मीडिया के कुछ हिस्से इस लीक को लेकर खबरें बनाते रहे. सीजेपी के ट्रस्टी ने इसका खंडन करते हुए लिखा और टाइम्स ऑफ इंडिया को एक स्पष्टीकरण प्रकाशित करने के लिए बाध्य होना पड़ा.
जनवरी 2008 - सीजेपी ने पाया कि वे न सिर्फ गवाहों के साथ दुर्व्यवहार कर रहे थे बल्कि स्थानीय राजनितिक बाहुबलियों से नजदीकियां भी बढ़ा रहे थे.
1 सितंबर, 2010 - सीजेपी के पूर्व कर्मचारी रईस खान ने सेतलवाड़ जी और सहयोगियों के खिलाफ आरोपों की झड़ी लगा दी. उन्हें बर्खास्त कर दिए जाने के बाद साढ़े इक्कतीस महीने (31.5 महीने) सीजेपी की सेतलवाड़ जी जी के खिलाफ उन्होंने हर मंच से इल्जामों की कतार लगाने की कोशिश की. रईस खान पठान ने पहले एस आई टी के समक्ष एक झूठे आरोपों से लैस एक याचिका दी. इसके बाद उन्होंने पुलिस आयुक्त, अपराध शाखा को याचिका लिखी. सेतलवाड़ जी और सीजेपी को बदनाम करने के लिए पठान ने कई मंचों से प्रोपगंडा करते रहे. जैसे कि अदालतों में चल रहे मामलों में, नानावती शाह आयोग और एसआईटी के समक्ष, आदि. यह एक महत्वपूर्ण दौर था, क्योंकि नरेंद्र मोदी और 61 अन्य लोगों के खिलाफ ज़किया जाफ़री मामले की सुनाई सर्वोच्च न्यायालय में चल रही थी, प्रशांत भूषण वकील थे और सीजेपी टीम ने आरोपियों और पुलिस कर्मियों के बीच फोन कॉल रिकॉर्ड पर गंभीर जांच की थी जो गौधरा के पश्चात, 28 फरवरी 2002 के बाद, की गयी हिंसा के सबसे बुरे दौर के दौरान जानबूझकर निष्क्रियता की शीतल सहभागिता को दर्शाती है.
अक्टूबर, 1 9, 2010 – सेतलवाड़ जी और उनके साथियों ने एक प्रतिक्रिया दर्ज की, लेकिन पठान की प्रतिपरीक्षा करने के अधिकार से इनकार कर दिया गया. सेतलवाड़ जी ने खुद पर लगाये आरोपों का जवाब हलफनामे के साथ दिया.
28 अक्टूबर, 2010 - गुलबर्ग मामले में रईस खान पठान ने अहमदाबाद सत्र न्यायालय में खुद को गवाह के रूप में ये आरोप लगाते हुए कि वह झूठे शपथ पत्रों और गढ़े मामलों के बारे में जानकारी रखते हैं, पेश होने का अनुरोध किया. उन्हें अनुमति नहीं दी गई है.
3 दिसंबर 2010 – नरोडा गाम सुनवाई के दौरान सत्र न्यायालय ने रईस खान पठान के आवेदन को खारिज कर दिया और कहा, "अदालत यह समझने में विफल हो जाती है कि जिस शख्स ने झूठे शपथ पत्र तैयार किए हैं और जिसके मन में न्याय की चल रही प्रक्रिया के लिए कोई पवित्रता नहीं है जिसका सच्चाई से कोई संबंध नहीं है, उसे इस मामले के निर्णय के लिए भरोसेमंद / विश्वसनीय कैसा माना जा सकता है?" न्यायालय ने निर्देश दिया है कि रईस खान पठान और “अन्य व्यक्तियों” के खिलाफ शहर के नागरिक और सत्र न्यायालय में रजिस्ट्रार द्वारा शिकायत की जाये और इसे आगे की कार्यवाही के लिए सक्षम न्यायालय में भेज दिया जाये. गौरतलब है कि, 2003 में सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष उत्तरजीवियों द्वारा दायर किए गए हलफनामे जिनमें जांच के हस्तांतरण की बात रखी गयी थी. कानून के तहत वे मामले जिनमें झूठी गवाही दी गयी हो किसी अदालत में (यहाँ, एन जी की निचली अदालत) केवल सबूत के आधार पर सजा के पात्र हैं.
20 दिसंबर 2010 - सरदारपुरा मुकदमा सुनवाई में सत्र न्यायालय ने रईस खान पठान के आवेदन को खारिज कर दिया और रईस खान पठान को एक नोटिस जारी करते हुए कहा कि क्यों नहीं उसपर मुकदमे के दौरान अदालत को 'गुमराह करने' के लिए मुकदमा चलना चाहिए.
दिसंबर, 2010 - गुजरात हाईकोर्ट ने अचानक और बिना कोई नोटिस जारी किये याचिका को रद्द कर दिया. पांडरवाडा सामूहिक कब्रों के मामले में रईस खान ने उन्हें बताया कि तीस्ता सेतलवाड़ जी को जेल भिजवाना उनका एकमात्र उद्देश्य था. सेतलवाड़ जी ने मुंबई में पारगमन जमानत के लिए आवेदन दिया और 15 मार्च 2011 को गोधरा सत्र न्यायालय द्वारा उन्हें (अग्रिम ज़मानत) जमानत मिल जाने की पुष्टि की गई. पृष्ठभूमि: सरकार के एक अधिकारी द्वारा रात 1.30 बजे 2.1.2006 को यह एक प्राथमिकी (सीआर 1-3-2006), कुछ लोगों द्वारा जमीन की खुदाई के बाद, दायर की गई, जो अपने मृत रिश्तेदारों के अवशेषों की मलबे में तलाश कर रहे थे, जिन्हें जल्दी में दफ्न किया गया था. उच्च न्यायालय द्वारा सीबीआई को मामले की जांच करने और पीड़ितों को डीएनए परीक्षण के लिए नमूने प्राप्त करने के निर्देश दिए जाने के बाद एफआईआर दर्ज कराई थी. 2011 में इस मामले में तीस्ता सेतलवाड़ जी को अभियुक्त के रूप में जोड़ा गया था. रईस खान पहले उत्तरजीवी लोगों के साथ एक अभियुक्त के तौर पर था, बाद में उसने अपनी गवाही से मुकर कर कहा कि उसका "उद्देश्य सेतलवाड़ जी को गिरफ्तार करवाना था" (टाइम्स ऑफ़ इंडिया दिसंबर 31, 2010).
2 अगस्त 2011 - सेतलवाड़ जी को मुंबई में पारगमन जमानत मिल जाने के बाद अतिरिक्त सत्र न्यामूर्ति, अहमदाबाद द्वारा उन्हें अग्रिम जमानत भी मिल गई. गुजरात सरकार ने उन्हें हिरासत में लेकर पूछताछ करने की माँग रखी जिसे सत्र न्यायलय ने ख़ारिज कर दिया. तीस्ता को ज़मानत मिल गयी.
अगस्त-सितम्बर 2011 - पांडरवाडा सामूहिक कब्रों के मामले में और नरोडा गाम मामले में, सर्वोच्च न्यायलय ने सख्ती से गुजरात पुलिस को सुनियोजित तौर पर उत्पीड़न करने से रोक लगायी.
सितम्बर 2011 – गुजरात सरकार ने तीस्ता की ज़मानत ख़ारिज करने के लिए गुजरात उच्च न्यायलय में याचिका दाखिल की. यह याचिका विचाराधीन है और कभी भी इस पर फैसला आ सकता है (2017).
9 नवंबर, 2011- मेहसाना न्यायालय, रईस खान पठान के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 177 और 182 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए लिखित शिकायत करने के लिए रजिस्ट्रार, जिला और सत्र न्यायालय मेहसाना को निर्देश देती है. शिकायत को सक्षम न्यायालय में भेजा जाएगा. 9 नवंबर, 2011 को फैसले करते हुए 31 लोगों को 1 मार्च, 2011 को 33 लोगों की हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए, कोर्ट ने सीजेपी की भूमिका पर टिप्पणी करते हुए उसकी भूमिका की प्रशंसा की. इस फैसले में काबिल न्यायाधीश ने अनुच्छेद 56 और 57 में इस मुद्दे से संबंधित फैसला सुनाया जिसमें अनुच्छेद 56 उल्लेखनीय है इसलिए यहां दोबारा प्रकाशित किया गया है: "56 -यह अभियुक्त की ओर से प्रस्तुत किया जाता है कि, गवाहों को श्रीमती तीस्ता सेतलवाड़ जी द्वारा सिखाया पढ़ाया गया. वर्तमान मामले में तीस्ता सेतलवाड़ जी और उसके संगठन की रुचि स्पष्ट है. गवाहों ने विशेष रूप से इनकार कर दिया है कि, तीस्ता सेतलवाड़ जी ने उनसे कहा है कि इस मामले में क्या सबूत दिए जाने हैं. इस संबंध में साक्ष्यों और तथ्यों को ध्यान में रखते हुए, जब हम इस तथ्य पर विचार करते हैं कि सिर्फ मामले पर चर्चा करना सिखाने पढ़ाने में शामिल नहीं होता. ये कोई स्वीकृत प्रस्ताव नहीं है कि गवाहों से कभी भी किसी के द्वारा संपर्क नहीं किया जायेगा या उस विषय पर बात नहीं की जायेगी कि वे अदालत में क्या बयान दें. गवाहों को कई मुद्दों पर राय दी जा सकती है जैसे कि वे अदालत में घबराएं नहीं, ध्यान से पूछे हर सवाल को सुने, बिना किसी भय के न्यायालय के सामने तथ्य बताएं, इसलिए इस संदर्भ में नैतिक या कानूनी तौर पर कोई आपत्तिजनक बात नहीं दिखाई देती है. गवाह को सिखाने-पढ़ाने या अदालत में उसके व्यवहार के विषय में मार्गदर्शन करने में काफी अंतर है. वर्तमान मामले में, पीड़ित गवाह इस तरह के दिमागी तनाव में थे कि किसी के क्रियाशील समर्थन के बिना वे सबूत देने के लिए अदालत के सामने नहीं आते. प्रोत्साहन और सलाह अगर शांति और न्याय के लिए नागरिक द्वारा प्रदान की जाती है इसे बहकाने के रूप में नहीं माना जा सकता है. इस मामले से यह स्पष्ट है कि न्याय और शांति के लिए नागरिक ने राज्य के अधिकारियों के खिलाफ माननीय उच्चतम न्यायालय के सामने आरोप लगाए हैं लेकिन उस बिनाह पर यह नहीं कहा जा सकता कि एनजीओ ने ये कृत किसी बुरे इरादों के साथ किया है. उन्होंने उस सच्चाई के लिए लड़ाई लड़ी थीं, जिस सच पर उन्हें यकीन था. इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने अदालत में अभियुक्तों की गलत पहचान करने के लिए गवाहों को समझाया है."
29 अगस्त, 2012- नरोडा पाटिया के फैसले के अंशः "उल्लेखनीय है कि यह आरोप नहीं लगाया जा सकता है कि गैर सरकारी संगठन के मुखिया या वकीलों या सामाजिक कार्यकर्ताओं की आरोपियों के खिलाफ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी या बैर है. इसलिए पीडब्लू से जिरह के दौरान ये नहीं पाया गया कि वे जो कुछ भी बोल रहे थे, उन्हें सिखाया गया हो. ये तर्क बहुत ही अप्रासंगिक हैं. इससे एनजीओ का क्या लाभ होगा, सिवाय इसके, जैसा कहा गया कि वे गुजरात राज्य को बदनाम करना चाहते ह? लेकिन ये आरोप लगाने वाले भूल गए कि गुजरात सरकार अभियुक्त नहीं है बल्कि मुकदमा चलाने वाला एक माध्यम है. इस आवेदन में कोई तथ्य नहीं पाया गया है.
मार्च-जुलाई 2012- बेस्ट बेकरी मामले में एक अन्य साक्षी यासमीन शेख, रईस खान द्वारा प्रेरित और जिसका महेश जेठमलानी प्रतिनिधित्व कर रहे थे, 2012 में बॉम्बे हाईकोर्ट में बेस्ट बेकरी अपील की सुनवाई के दौरान, प्रक्रिया को बाधित करने की कोशिश की. खान द्वारा उकसाने पर शेख ने शपथ पत्र पर झूठे तथ्य रखने करने के लिए एक हलफनामा दायर किया था, जो हालिया शिकायत में अभी भी शामिल हैं. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे स्वीकार नहीं किया. अनुच्छेद 151 ...बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसले, दिनांक 4/07.2012: "यद्धपि उनकी गवाही में चूक और सुधार हुए हैं और कुछ प्रमुख विवरणों पर विरोधाभास है मगर इसके आधार पर साक्ष्यों को पूर्णतः नकारा नहीं जा सकता है और यह नहीं कहा जा सकता है कि उन्हें तीसरे दल, विशेष रूप से श्रीमती तीस्ता सेतलवाड़ जी द्वारा बहकाया गया है. यह भी नहीं भुलाया जा सकता है कि जब गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले और आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जहिरा द्वारा अपील की गई थी तब उस पूर्वकथित अपील में श्रीमती तीस्ता सेतलवाड़ जी, जो कि एनजीओ – सीजेपी की सदस्या हैं, भी पक्ष थी. सुप्रीम कोर्ट ने इस अपील का स्वागत किया, ज़हिरा और अन्य लोगों के शपथ पत्र को स्वीकार कर लिया और श्रीमती तीस्ता सेतलवाड़ जी को इस मामले में हस्तक्षेप करने की अनुमति दी और इसके बाद मामले को बॉम्बे हाईकोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया था और माननीय मुख्य न्यायाधीश को अनुरोध किया गया था कि वे मुकदमे को सक्षम अदालत सौंप दिया जाये. ऐसी स्थिति में, सुप्रीम कोर्ट ने उनुमती दी और उन्होंने कहा, संभवत: श्रीमती तीस्ता सेतलवाड़ जी यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि ये गवाह न्यायालय के सामने पेश किए जाएं और इसलिए, हमारे विचार में, इस विषय में कोई और उद्देश्य समझना उचित नहीं होगा. इसलिए लगाये हुए आरोपों को नहीं माना जायेगा."
जून 2012 - एक साधारण मानहानि प्रकरण का उपयोग डीसीबी अपराध शाखा, अहमदाबाद द्वारा एक गहन जांच करने के लिए किया गया था. अहमदाबाद के अपराध शाखा के पुलिस अधिकारियों ने रईस खान से सहभागिता दर्शायी. इस जांच के खिलाफ़ सेतलवाड़ जी ने माननीय उच्च न्यायालयाल के समक्ष चुनौती दी.
2012 - 2013 - कई सुनवाई के लिए राम जेठमलानी, मीनाक्षी लेखी सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष नरोडा गाम मामले में रईस खान के लिए उपस्थित हुए, जस्टिस आफताब आलम के खिलाफ आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि वे इस मामले की सुनवाई से खुद को हटा लें.
फरवरी 2012 से दिसंबर 2013 - एसआईटी प्रचलित ज़ाकिया जाफ़री केस में एक समापन रिपोर्ट दाखिल करती है अमिकस क्यूरी रिपोर्ट के बावजूद जो साफ़ तौर पर मुख्यमंत्री के खिलाफ अभियोजन की सिफारिश कर रही थी. ज़ाकिया समापन रिपोर्ट को चुनौती देती है और जांच पत्रों की माँग करती है. मई 2012 में 63 बक्सों 24,000 पृष्ठों फाइलों की फाइलें उनको सौंप दी जाती हैं. उन रिपोर्ट्स में एसआईटी ने जाँच के महत्वपूर्ण हिस्से नदारद पाए गए. उन्होंने फरवरी 2013 में सीजेपी की सहायता से सम्पूर्ण दस्तावेजों का अनुरोध करते हुए दूसरी एसएलपी दायर की. सर्वोच्च न्यायालय उन्हें विरोध याचिका दायर करने के लिए दो महीने यानि 15 अप्रैल, 2013 तक का वक़्त देती है, जो उन्होंने की. इस ऐतिहासिक विधेयक पर सभी 2013 तक के तर्कों पर बहस की गयी. अंत में 26 दिसंबर, 2013 को मजिस्ट्रेट गणात्रा ने विरोध याचिका को खारिज कर दिया.
4 जनवरी 2014 - उच्च न्यायालय में गुजरात पुलिस के लिए महेश जेठमलानी ने प्रतिनिधित्व किया और सर्वोच्च न्यायालय में रईस खान का. गुलबर्ग सोसाइटी के एक पूर्व निवासी ने तीस्ता जी, जावेद आनंद, तनवीर जाफ़री और दो अन्य लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करते हैं, जिन्होंने उन लोगों को 1.5 करोड़ रुपये के धन गबन करने का आरोप लगाया था. गुलबर्ग सोसाइटी में 2002 दंगा पीड़ितों के लिए स्मारक के निर्माण के लिए धन था. यह ज़ाकिया जाफ़री विरोध याचिका की अस्वीकृति के आठ दिन बाद की घटना है एफआईआर के अनुसार, सेतलवाड़ जी और जावेद आनंद पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 72 (ए) सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, और भारतीय दंड संहिता के 406, 420 और 120 बी के धारा 438 के तहत मामला दर्ज किया गया है. तीस्ता जी और अन्य लोगों ने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन किया और बॉम्बे हाईकोर्ट ने उन्हें तीन सप्ताह तक अंतरिम राहत दी. गुजरात पुलिस ने इस शिकायत में भी रईस खान को गवाह बनाया है. गुलबर्ग सोसाइटी के तीन सदस्यों की शिकायत के आधार पर कथित तौर पर यह एफआईआर दर्ज कराई गई है और क्राइम ब्रांच द्वारा युगल, सेतलवाड़ और आनंद के खिलाफ एक घातक अभियान चलाया गया है. युगल को मुंबई से पारगमन जमानत मिलती है (वकील मनीषा लुव कुमारी गुजरात के राज्य में और गुजरात में रईस खान के लिए प्रकट होती हैं). हलफनामे पर पुनर्विचार के दस्तावेजों के साथ गलत आरोप बनाये गये हैं, और मीडिया की तरफ से एक तरफा झूठे आरोपों का दुष्प्रचार जारी है. सत्र न्यायालय ने मार्च 2014 में एबीए (एंटीसिपेट्री बेल) देने से इनकार कर दिया, फिर वे गुजरात एचसी में इस पर अपील करते हैं जहां आंतरायिक सुनवाई 2014 के माध्यम से होती है और हलफनामा पर विस्तृत रिजोयेंडर्स दाखिल किए जाते हैं. वाउचर और दस्तावेजों के 20,000 से अधिक पृष्ठों को एचसी को प्रस्तुत किया गया है. कोर्ट ने दिसंबर 2014 से जनवरी 2015 तक पूछताछ के लिए अपराध शाखा के समक्ष उपस्थित होने के लिए सेतलवाड़ जी और आनंद को निर्देश दिया. उन्होंने उसका पालन किया. इस कष्टप्रद और तनावपूर्ण काल के दौरान अपनी टीम के साथ सेतलवाड़ जी ने अपनी याचिका को मजिस्ट्रेट गणरा के बर्खास्तगी के खिलाफ गुजरात उच्च न्यायालय में सीआरए 205/2014 को दर्ज करने में श्रीमती ज़ाकिया जाफ़री की सहायता करने का प्रबंधन किया है. कोई आरोप पत्र आजतक दर्ज नहीं किए गए हैं.
2014 – 2017 इस कार्य को पुलिस और आईडीबीआई और यूनियन बैंकों द्वारा अंजाम दिया गया. बिना ट्रस्ट को, तीस्ता को या आनंद को पहले नोटिस दिए बग़ैर. उन्होंने पहले बॉम्बे उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसने इसे अधिकार क्षेत्र के मुद्दों पर (अप्रैल 2014) गुजरात को भेज दिया था. इसके बाद उन्होंने चार अलग-अलग याचिकाओं में गुजरात उच्च न्यायालय में आवेदन किया; न्यायालय ने मजिस्ट्रेट को तीन महीनों के भीतर सुनने का निर्देश दिया. फिर मैजिस्ट्रेट के समक्ष 2015 में चार अलग-अलग याचिकायें दायर की गईं और तर्क दिए गए. जिसके बाद मामले को गुजरात उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी, जब निचली अदालत ने खातों को फिर चालू करने के लिए आवेदन रद्द कर दिया. गुजरात उच्च न्यायालय में तर्कों के समापन के बाद, न्यायाधीश ने कई महीनों तक निर्णय नहीं दिया, जिसके बाद इसे ठुकरा दिया गया. फिर सीजेपी, सबरंग, जावेद आनंद और सेतलवाड़ जी ने सर्वोच्च न्यायालय में इसको चुनौती दी है. मामले पर जुलाई 2017 में बहस हुई. 15 दिसंबर, 2017 को, सर्वोच्च न्यायलय ने लंबित खातों को रद्द करने के मामले को खारिज कर दिया.
23 अगस्त 2014 - ट्वीट के लिए भड़काऊ भाषण का मामला है कि तीस्ता सेतलवाड़ जी ने माफी मांगी और 22.08.2014 को एक घंटे में 40 मिनट के भीतर हटा दिया. इस आरोप के लिए दो प्राथमिकी दर्ज की गई, एक अपराध शाखा अहमदाबाद द्वारा और दूसरी भावनगर में. दोनों मामलों में सेतलवाड़ जी मुंबई से ट्रांजिट जमानत की मांग करती हैं, अहमदाबाद सत्र न्यायालय और भावनगर सत्र न्यायालय द्वारा उन्हें अग्रिम जमानत मिल गई. अहमदाबाद अदालत ने एक शर्त रखी है कि वह अपने पासपोर्ट को पुलिस के पास जमा कर दें. इस मामले में भी गुजरात पुलिस ने हिरासत में लेकर पूछताछ करने की माँग की. सेतलवाड़ ने आदेश के संशोधन के लिए आवेदन दिया और न्यायलय से निर्देश हासिल किया जिसमें उनका पासपोर्ट सत्र न्यायलय के पास रहेगा न कि पुलिस के पास. उन्होंने इस मामले में अपील की है (आदेश की शर्तों के संशोधन के लिए) एक अलग याचिका में जो दुर्भावनापूर्ण एफआईआर को रद्द करने के लिए प्रार्थना करती है.
2014 - 2015 अहमदाबाद अदालत ने तीस्ता सेतलवाड़ जी को मलेशिया, इंडोनेशिया और दक्षिण कोरिया की अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में शामिल होने के लिए विदेश यात्रा करने की अनुमति दे दी.
12 फरवरी 2015 - महेश जेठमलानी ने मीडिया को एक बयान दिया कि जावेद आनंद को गिरफ्तार कर लिया गया है! गुजरात उच्च न्यायालय सेतलवाड़ जी और आनंद के एबीए को खारिज कर दिया और उन्हें सर्वोच न्यायलय में अपील करने के लिए अनुमति देने से इनकार कर दिया. 40 मिनट के भीतर, गुजरात पुलिस कई सौ किलोमीटर की दूरी तय करके, जुहू, मुंबई में उनके निवास पर आर्डर की एक प्रति के साथ पहुँच गयी. सर्वोच्च न्यायलय आदेश पर रोक लगा देता है और उसी दिन संरक्षण प्रदान करता है. 19 फरवरी को सर्वोच्च न्यायलय द्वारा विस्तृत सुनवाई के दौरान सीतलवाड़ और आनंद को जेल में रखने की ज़बरदस्त कोशिश करने के लिए अभियोगी पक्ष को खरी खरी सुनाई.
मार्च - अप्रैल, 2015- गुजरात पुलिस द्वारा चलाये गए खोजबीन अभियान के दौरान पाए गए दस्तावेजों का उपयोग करते हुए गुजरात सरकार ने गृह मंत्रालय को सबरंग ट्रस्ट, सीजेपी और सबरंग कम्युनिकेशंस में एफसीआरए जांच को करने के लिए उकसाते हुए लिखा. सर्वोच्च न्यायलय इसके लिए एबीए को एक तीन न्यायाधीश वाली बेंच को सौंप देता है. अप्रैल 2015 में गृह मंत्रालय निरीक्षण करता है.
6 मार्च 2015 - मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने केंद्रीय सलाहकार बोर्ड शिक्षा (सीएबीई) छुड़वाने के लिए तीस्ता और पति जावेद आनंद के खिलाफ गबन के आरोपों की जांच के लिए एक समिति गठित की. सेतलवाड़ जी के सबरंग ट्रस्ट पर सर्व शिक्षा अभियान निधि का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया. सबरंग ने कथित रूप से पिछले तीन वर्षों में एसएसए से 1.30 करोड़ रुपये प्राप्त किए थे और इस साल 5.91 लाख रुपये लौटा दिए थे. शिकायत जिस पर जांच समिति की स्थापना की गई थी जून 2014 में पूर्व सबरंग कर्मचारी रईस खान पठान द्वारा दायर की गई थी.
19 जून 2015 - गृह मंत्रालय ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (एफईआरए) के कथित उल्लंघन के लिए 15 दिनों के अंदर जवाब देने के लिए गृह मंत्रालय तीस्ता सेतलवाड़ जी और जावेद आनंद द्वारा चलाए गए सबरंग ट्रस्ट और सिटिज़न फॉर पीस एंड जस्टिस (सीजेपी) को नोटिस जारी किये. कहा गया कि सीजेपी को 2008-09 से 2013-14 तक 1.18 करोड़ रुपये का विदेशी धन मिला था. दस्तावेजों द्वारा समर्थित प्रत्येक आरोप का जवाब दिया गया.
29 जून 2015 - सत्र न्यायालय ने ब्राज़ील में एक अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी की यात्रा करने के लिए तीस्ता सेतलवाड़ जी को अनुमति देने से इनकार कर दिया. यह जमानत देने पर सर्वोच्च न्यायलय की कार्यवाही से एक सप्ताह पहले होता है. तीस्ता का पासपोर्ट अक्टूबर 2014 से उनके खिलाफ लंबित आरोपों के कारण स्थानीय अदालतों में ज़ब्त है.
जुलाई 2015 - एमएचए के अधिकारियों ने जून 2015 में फोर्ड फाउंडेशन से ली गई परामर्श पर स्पष्टीकरण मांगा था. मध्य जून के समाचार पत्रों में सीबीआइ को एमएचए द्वारा प्राथमिकी के बारे छापा गया. 30 जून 2015 को, सीजेपी के वकील सीबीआई से बात करते हैं और दोनों सेतलवाड़ जी और आनंद ने निर्देशक, सीबीआई को पूर्ण सहयोग प्रदान करने की पेशकश की है और जून 2015 में अपने निरीक्षण के दौरान गृह मंत्रालय को उपलब्ध कराए गए सभी दस्तावेजों को भी सूचीबद्ध किया. इसके बावजूद, घरों और कार्यालयों पर छापे मारे गए. कुछ ही दिनों के भीतर, दोनों अग्रिम ज़मानत के लिए सीबीआई कोर्ट, मुंबई में जाते हैं. सीबीआई कोर्ट ने दोनों की अग्रिम ज़मानत की अर्जियों को खारिज कर दिया और दोनों को बॉम्बे उच्च न्यायलय द्वारा अंतरिम सुरक्षा प्रदान की गई. एक सप्ताह के भीतर, एचसी के निर्देशों के तहत दोनों ही सीबीआइ के सामने सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए प्रस्तुत हुए.
11 अगस्त 2015 – काफी ड्रामे के पश्चात बॉम्बे उच्च न्यायलय ने तीस्ता सेतलवाड़ जी और जावेद आनंद को यह कहते हुए अग्रिम ज़मानत दी कि सरकार के खिलाफ बोलना राष्ट्र विरोधी नहीं है. महेश जेठमलानी सुनवाई के एकदम अंत में विश्व हिंदू परिषद के पक्ष में उपस्थित हुए.
अक्टूबर 2015 - 2016 - यह मामला गुजरात पुलिस अग्रिम ज़मानत मामले से चिह्नित है. दोनों हर छह सप्ताह पर आते रहे और 2015 और 2016 के बीच व्यक्तिगत उपस्थिति अनिवार्य रही.
2016 - गृह मंत्रालय सीजेपी के लिए एफसीआरए लाइसेंस प्रदान करती है और इसे पूर्व अनुमति वर्ग में रखती है. सबरंग ट्रस्ट को पेशी का मौका दिया जाता है जिसके बाद लाइसेंस रद्द कर दिया जाता है. बाद में 2016 में एफसीआरए लाइसेंस दिए जाने के बाद, सीजेपी के एफसीआरए लाइसेंस भी रद्द कर दिया जाता है.
2016 के दौरान - सेतलवाड़ जी और आनंद को मजबूर किया जाता है ताकि हर दो महीने उनकी पेशी दिल्ली में सर्वोच्च न्यायलय में हो और उनें सफ़र करके वहां जाना पड़े. जमानत का आवेदन अभी भी लंबित है.
दिसंबर 2016 - सीबीआई ने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन की जांच शुरू की. सीबीआई ने आरोपों की जांच करते हुए कहा कि एक कंपनी के रूप में सबरंग कम्युनिकेशन पब्लिशिंग प्राइवेट लिमिटेड फोर्ड फाउंडेशन से परामर्श स्वीकार नहीं कर सकता. चूंकि एफएफ ने कंसल्टेंसी राशि से टीडीएस काट लिया था, इसलिए इसे कर कटौती परामर्श (आय का स्रोत) के रूप में माना गया था और अनुदान नहीं दिया गया था.
जनवरी 2017 - मुंबई उच्च न्यायालय द्वारा तीस्ता सेतलवाड़ जी और उसके पति जावेद आनंद को दी गयी अग्रिम ज़मानत को न्यायिक जमानत में बदला गया. वे यदि मुंबई से बाहर यात्रा करते हैं तो उसकी रिपोर्ट अदालत में करने के लिए बाध्य हैं और देश से बाहर की यात्रा के लिए अनुमति का आवेदन करना अनिवार्य है. मामला लंबित है.
2017 - सर्वोच्च न्यायलय ने रोक हटाई और सर्वोच्च न्यायलय को चार्जशीट में सुधार के लिए उच्च न्यायालय के पास जाने की इजाजत दी, जहां उन्हें 'फरार आरोपी’ जैसे गलत नाम से संबोधित किया गया था.
2017 - नरोडा गाम मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने सेतलवाड़ जी को गुजरात सत्र न्यायालय के आदेश के खिलाफ निचली अदालतों के पास जाने के लिए स्वतंत्रता प्रदान की.
15 दिसंबर, 2017 – तीस्ता सेतलवाड़ जी, जावेद आनंद और उनकी गैर सरकारी संगठनों सीजेपी और सबरंग ट्रस्ट से जुड़े बैंक खातों के इस्तेमाल पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी गयी. सेतलवाड़ जी और आनंद ने खातों को निलंबित करने के खिलाफ याचिका सर्वोच्च न्यायलय में दी. हालांकि सर्वोच्च न्यायलय ने इस लंबित याचिका को खारिज कर दिया था, मगर जांच के पूरा होने के बाद सेतलवाड़ जी के खातों को दोबारा चालू करने की अनुमति दे दी थी. 4 जनवरी, 2018 को, इस मामले में एफआईआर दर्ज हुए चार साल पूरे हो गए.

 

((यह लेख सर्वप्रथम २२ फ़रवरी को प्रकाशित हुआ था. इसे आज पुनः प्रकाशित किया जा रहा है.))