भारत सरकार ने अचानक घोषणा की है कि अप्रैल 2020 से सितंबर 2020 तक वह भारतीय निवासियों का निर्धारण (राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर-एनपीआर) करने के लिए घर घर जाकर सर्वेक्षण करेगी। भारत में दशक में एक बार होने वाला जनसंख्या सर्वेक्षण, सेंसस भी 2021 में होने वाला है। इन दो प्रक्रियाओं, एक जो आवश्यक और नियमित प्रक्रिया है अर्थात सेंसस और दूसरी विवादास्पद एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया है, को जोड़कर सरकार जानबूझकर भ्रम पैदा कर रही है और खतरे की घंटी बजा रही है।
21 सवाल जो सरकार नये एनपीआर 2020 के तहत पूछ रही है, इस से हमारी निजता/प्राइवेसी को खतरा तो है ही, साथ ही लोगों पर निगरानी के दुरूपयोग का भी खतरा है। यही नहीं सबसे भयावह बात है कि इस से आबादी के एक वर्ग को लक्षित कर के उन्हें नागरिकता से वंचित भी किया जा सकता है। यही कारण है कि हम एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ हैं। इसी के साथ हम यह भी स्पष्ट करना जरूरी समझते हैं कि, हमें जनगणना यानि सेन्सस को लेकर कोई आपत्ति नहीं है। सरकार एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया को जनगणना प्रक्रिया से मिलाकर कुटिलता का भी परिचय दे रही है, और बेईमानी का भी। यह संभव है कि राज्य सरकारें दोनों सर्वेक्षण एक ही समय पर करवाने के लिए अधिकारियों के एक ही, यानी उसी समूह को लगायेगी। इसलिए हमें स्पष्ट रूप से दोनों को समझने और इनमें फर्क करने की आवश्यकता है।
- हमें किन सवालों के जवाब देने है?
- किन सवालों के जवाब देने से हमें निश्चित रूप से इंकार करना है?
- क्यों?
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