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बंद कीजिये शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर पुलिस का अत्याचार

Police brutality against teaching candidates

हमारा संविधान हमें अपने अधिकारों की मांग करने और अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए शांतिपूर्ण तरीके से विरोध प्रदर्शन का अधिकार देता है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद19 में इसका स्पष्ट उल्लेख है. लेकिन हमारी पुलिस का व्यवहार इसके बिलकुल उलट नज़र आता है. पुलिस द्वारा की जा रही इन असंवैधानिक गतिविधियों की गंभीरता को समझते हुए हमने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को ज्ञापन दे कर इस संबन्ध में उचित कार्यवाही करने की मांग की है.

ऐसे ढेरों मामले हैं जिसमें पुलिस ने किसी तानाशाह राजा की पल्टन की तरह उन लोगों पर क्रूरतम कार्यवाहियां की हैं जो या तो अपने अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं या समाज को उनके अधिकारों के लिए जागरूक कर रहे हैं. 

शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार किसी भी लोकतंत्र की शक्ति का प्रतीक होता है. अपने अधिकार जानने और उन्हें बनाए रखने के लिए CJP से जुड़िये. हमारी मुहीम का समर्थन करने के लिए यहाँ योगदान दीजिये.

हाल ही के कुछ हफ़्तों को देखें तो उत्तर प्रदेश से पुलिस की जबरिया कार्यवाही के मामले सामने आए हैं. उत्तर प्रदेश की दो युवा महिला छात्र नेताओं को जो अपनी मांगों के लिए शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रही थीं पुलिस ने अपना निशाना बनाया है. सिटिज़न फ़ॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) ऐसे हर व्यक्ति और समुदाय के साथ खड़ा है जो अपने अधिकारों के लिए संवैधानिक तरीके से प्रयासरत हैं.

लखनऊ विश्वविद्यालय की छात्र नेता पूजा शुक्ला को जुलाई के दिन पुलिस ने उस वक्त बुरी तरह पीटा जब वे अपने कुछ साथियों ने साथ विश्वविद्यालय परिसर के बाहर शांतिपूर्ण भूख हड़ताल पर बैठी थीं. बता दें कि पूजा शुक्ला ने नए सत्र में दाख़िले के लिए प्रवेश परीक्षा दी थीपरिणाम की सूची में अपना नाम न पाकर उन्होंने इसका कारण जानना चाहा परन्तु निराशा हाथ लगी. पूजा कहती हैं विश्वविद्यालय के आला अधिकारी द्वारा बहुत ख़राब लहज़े में कहे गए शब्द “मेरा कॉलेज है मै जिसे चाहूंगा एडमिशन दूंगा” सुनने के बाद भूख हड़ताल ही एकमात्र रास्ता बचा था.  

एक तो भूखे रहने से आई कमज़ोरी उस पर पुलिस की बेतहाशा पिटाईपूजा की हालत ऐसी बिगड़ी के उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. गौरतलब है कि पूजा शुक्ला ने पिछले साल 2017 में विश्वविद्यालय परिसर में हो रहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक कार्यक्रम जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी शामिल थे का ये कह कर विरोध किया था कि ये कार्यक्रम विश्वविद्यालय के ख़र्चे पर हो रहा है जो ग़लत है. पूजा शुक्ला और उनके कुछ साथियों ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को काले झण्डे भी दिखाए थे जिसके बाद उन्हें लगभग एक महीने के लिए जेल में बंद कर दिया गया था.

जून महीने में हुई ऐसी ही एक और घटना में भी पुलिस का हूबहू ऐसा ही असंवैधानिक बर्ताव देखने को मिला. इलाहाबाद विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष ऋचा सिंह व उनके कुछ साथियों पर पुलिस ने उस वक्त लाठीचार्ज कर दिया जब वे उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) की परीक्षा का प्रश्नपत्र लीक हो जाने की घटना पर शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रही थीं. लाठीचार्ज के बाद ऋचा सिंह और उनके साथियों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया. बाकि छात्रों को छोड़ दिया गया और ऋचा सिंह को दिनों तक जेल में बंद रखा गया. जेल से रिहा होने पर ऋचा ने प्रशासन का रवैया पक्षपातपूर्ण होने की बात कही.  

बात अब केवल गिरफ़्तारी और पिटाई तक ही सीमित नहीं रह गई है. याद कीजिये मई 2018 में हुई तूतीकोरिन की घटना को. इलाके के लोग स्टारलाइट कॉपर प्लांट के विस्तार का विरोध कर रहे थे. क्योंकि इस प्लांट से निकल रहे विषैले पदार्थों के कारण तूतीकोरिन और आसपास के इलाकों का पर्यावरण वैसे भी दूषित हो चुका है, उस पर एक नई इकाई के शुरू हो जाने पर तो आफ़त आ ही जानी थी. जीवन जीने लायककम से कम सांस ले सकने लायक हवा और पी सकने लायक थोड़ा पानी बचाए रखने की जद्दोजहद कर रहे बेकसूर और मासूम गांव वालों को पुलिस ने निशाना लगा लगा कर मारा. दस से ज़्यादा लोगों की जान चली गई.

ऐसी हर घटना के साथ इंसानियत और हमारा लोकतंत्र भी थोड़ा थोड़ा मरता जाता है.

शांतिपूर्ण विरोध पर पुलिस हिंसा में वृद्धि के चलतेसीजेपी ने उचित कार्रवाई की मांग करते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को यह ज्ञापन सौंप दिया है.

 

अनुवाद सौजन्य – अनुज श्रीवास्तव और अमीर रिज़वी

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